कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
इतना बड़ा देश ! इतनी कम आबादी ! इन निर्जन द्वीपों में लोग किस तरह रहते होंगे? विशेषकर शीत में तो वातावरण और भी अधिक जनशून्य, वीरान लगता होगा?
हर घर के आगे राष्ट्रीय ध्वज का संभवतः एक प्रयोजन यह भी होगा कि भटके नवागंतुक को मकान ढूंढने में कठिनाई न हो।
एक के बाद एक पहाड़, दूर-दूर तक फैले जंगल, नदियों, निर्झरों को पार करते हुए, हम कहां जा रहे हैं-किस दिशा में, समझ में नहीं आ रहा था।
कल रात की बातें अभी तक भी मस्तिष्क में घूम रही थीं। उत्सव का जैसा माहौल था। लोग अपने-अपने देश के गीत सुना रहे थे। अपने देश की रोचक बातें। कुछ वाद्य-यंत्र बजा रहे थे। बड़ा आल्हादकारी वातावरण था। अपने देश का एक लोक-गीत तुमने भी सुनाया था। सभी श्रोता मंत्रमुग्ध से सुन रहे थे। उसका अंग्रेजी में भावार्थ भी तुमने बतलाया था, "मछलियां सागर, सरिता में ही नहीं, सहारा की जलती रेत में भी होती हैं। तारे धरती में भी जगमगाते हैं। मेरी स्मृतियों में जब तक तुम जीवित हो, फिर मर कैसे सकते हो? न होते हुए भी तुम हो। हां। सांस में, वायु में, वातावरण में सुगंध की तरह तुम सर्वत्र हो।”
बाद में तुम्हारा परिचय देते हुए संस्थान के रैक्टर प्रो. फ्लातीन ने कहा था, "अभी आप इजिप्ट की जानी-मानी लोक गायिका बहिरा शफीक से एक गीत सुन रहे थे..."
इतने अर्से के निकट परिचय के पश्चात भी मेरे लिए यह एक नई सुखद सूचना थी।
मैं देर तक मंत्रमुग्ध-सा तुम्हारी ओर देखता रहा, अद्भुत सुरीला स्वर था।
“ऐसा क्यों होता है, तुमने मेरी ओर देखकर सन्नाटा तोड़ते हुए कहा था, “ज्यों-ज्यों हम अपने देश से दूर होते चले जाते हैं, त्यों-त्यों उसके नैकट्य का अहसास भी बढ़ता चला जाता है? जो पिरामिड वहां मुझे मात्र पत्थरों के ढेर लगते थे, वे यहां जीवंत होकर एक नया अहसास क्यों जगाते हैं? मुझे और अधिक अपने क्यों लगते हैं? नील नदी का जल और अधिक निर्मल, पवित्र और पारदर्शी लगता है, क्यों? अंजुरी में भरकर अमृत का-सा अहसास...।"
तुम कहीं बहुत भावुक हो आई थीं।
जिस समय तुम यह सब कह रही थीं, मुझे अपने देश की नदियां याद आ रही थीं-गंदे नालों में परिवर्तित होकर दम तोड़ती...।
मैं बातों की दिशा बदलकर कहता हूं, “तुमने गाने का प्रशिक्षण कहां लिया?"
“यों ही थोड़ा-सा अभ्यास किया है। जिंदगी में कभी समय ही नहीं मिला आराम से, चैन से कुछ क्षण बैठने का।” तुम जैसे शून्य में कुछ खोजती हुई-सी कह रही थीं, अपने आप को सुनाती हुई।
"जब तुम्हारे पति इतनी अच्छी नौकरी में हैं, क़ाहिरा के एक इतने बड़े संस्थान से जुड़े हैं, फिर तुम दिन-रात इतना क्यों खटती हो? तुम उस दिन किसी से कह रही थीं कि जिंदगी में इतना सुकून मुझे कभी नहीं मिला, जितना . यहां आकर।”
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