कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
ब्राज़ील की लारा बोली, “क्यों, तुम ताजमहल क्यों नहीं बनवा देते?”
उसके लिए तो पहले तुम्हें मरना पड़ेगा। तुम्हारी स्मृति के बिना वह कैसे बनेगा !”
सब फिर हंसे।
इस पर नहले पर दहला जमाते हुए, कोरिया के किम-जोङ ने चिंता प्रकट करते हुए कहा, “पिरामिडों के लिए 'ममियां' कहां से लाओगे?"
रोमानिया की वृद्धा वायोनोवा की ओर इशारा करते हुए, कोई बीच में बोल पड़ा, "ये किस दिन काम आएंगी !”
सब एक साथ फटकर हंस पड़े, अट्टहास करते।
काग्रेरा के द्वीप बहुत देर तक हमारे साथ-साथ चलते रहे।
कुछ बड़े-बड़े थे तो कुछ इतने छोटे कि दौड़ते हुए बच्चे भी दोनों सिरे छू लें।
तुम छाया की तरह साथ-साथ चल रही थीं और अचरज भरी निगाहों से चारों ओर का परिदृश्य अपनी नीली स्वप्निल आंखों में समेटती जा रही थीं-एकदम गुंगी-सी।
हम सबको अब सामने के द्वीप पर जाकर 'प्रकाश-स्तंभ' के ऊपर चढ़कर चारों ओर का विहंगम दृश्य देखना था। यह नार्वे का धुर दक्षिण था-अंतिम छोर।
कई जलयान सागर की उत्ताल तरंगों को चीरते हुए, दक्षिण की दिशा में धीरे-धीरे छोटे होते हुए ओझल हो रहे थे। कुछ जहाज़ पूर्व की ओर मुंह किए धूमिल हो रहे थे।
मुझे सहसा जैसे कुछ याद आया। तुम्हारी ओर देखकर मैंने पूछा, “तुमने 'गल्फ-स्ट्रीम' का नाम सुना है?”
तुम क्षण भर असमंजस में सोचती रहीं, “गल्फ-स्ट्रीम' तो नहीं, हां, गल्फ कंट्रीज़ का नाम अवश्य सुना है।"
“तुम्हारा भी जवाब नहीं बहिरा...।” इतना कहकर मैं कुछ संयत होता हुआ कहता हूं, शांत स्वर में, “जहां इस समय हम खड़े हैं, उसके पास सागर में, सागर के अंदर पानी की एक विशाल गर्म धारा निरंतर प्रवाहित होती हुई, उत्तर के बर्फीले भू-खंडों तक पहुंचती है। इस गर्म धारा के प्रवाहित होने के कारण ही नार्वे के सागरीय तट जाड़ों में भी जमते नहीं। यातायात वर्ष भर खुला रहता है। है न अद्भुत चमत्कार !”
मैं हंसता हूं तो तुम भी अनायास हंस पड़ती हो, अपनी अम्लान, निश्छल हंसी में।
तुम्हारी पारदर्शी आंखों में एक साथ न जाने कितने-कितने भाव आते और ओझल होते रहे-धूप-छांह की तरह।
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