कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
आस-पास सेबों के बगीचे दिख रहे थे। एक जगह लिखा था- घोड़ों का फार्म..।
“तुमने कहा था, तुम्हारे घर में घोड़े भी हैं-फार्म हाउस में। कहो तो एक-दो घोड़े यहां से खरीद दें !"
तुम मेरी शरारत पर मंद-मंद मुसकरा दीं, बोलीं कुछ भी नहीं।
होकेसन तथा लार्विक शहर कब पार हुए, पता ही नहीं चला। कहीं रंग-बिरंगे जहाज लंगर डाले दिखते, कहीं ढेर सारी डीजल चालित नौकाएं सागर तट पर टकराती लहरों में हिचकोले खाती हुई। बड़े-बड़े लड़े एक-दूसरे की बगल में बंधे तैर रहे थे। दूर से, बहुत दूर से देखने पर लगता, जैसे अथाह नीले जल में कहीं दरियां-सी तैर रही हैं।
कहीं पॉलीथिन के लंबे गोल घरों में उगाई गई सब्जी की क्यारियां दिखतीं। पाले और बर्फ से बचाने के लिए यह व्यवस्था की गई थी।
काग्रेरा में भोजन की व्यवस्था थी और कुछ क्षण विश्राम की भी। पर हमने न भोजन किया, न विश्राम ही।
हम अचरज से चारों ओर का विहंगम दृश्य देखते रहे-छोटे-छोटे द्वीप-ही-द्वीपों का नज़ारा।
मैं अकेला ही दूर तक चला गया था-टहलता-टहलता। लौटकर आया तो लगा कि तुम प्रतीक्षा में हो।
"सारा काग्रेरा देख आए या कुछ छूटा भी...!” तुमने सहजता से कम, व्यंग्य से अधिक कहा।
मैंने अपनी उसी रौ में उत्तर दिया, “कुछ औरों के लिए भी छोड़ आया, पर हां...।" जैसे मुझे अकस्मात कुछ याद आया, “एक विचार सूझा है। दो-तीन द्वीप ख़रीद लेते हैं। मिट्टी के मोल मिल जाएंगे।”
"उनका क्या करोगे?” तुमने उत्सुकता से पूछा।
"अरे, तुम इनके लिए पिरामिड बनवा दो। नार्वेजियनों के पास ऐसे अतीत के स्मारक कम हैं। बेचारे सैलानियों को दिखलाकर अपनी रोजी-रोटी की व्यवस्था कर लेंगे।”
इस पर सब हंसे।
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