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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


मैंने अपने दाहिने हाथ की आस्तीन मोड़कर थोड़ा-सा ऊपर कर ली, भीगने के डर से । उंगलियों को हिलाते हुए पानी में डाला तो बर्फ का-सा ठंडा पानी बिच्छू की तरह डंक मारता जैसा लगा।

"ओह !” झट से मैंने हाथ हटा लिया।

“क्यों, क्या हुआ?” तुमने जिज्ञासा से देखते हुए पूछा।

यहां पानी में बहुत सारे 'जल-सर्प' हैं। लगता है किसी सांप ने डंक मार दिया है !"

"सांप ने नहीं, सांपिन ने डंक मारा होगा। आपका रक्त मीठा लगा होगा...।” शरारत-से तुमने देखा था।

मुझे थोड़ा-सा गुस्सा आया।

"काटू अपनी उंगली, तुम चखोगी?"

मैं कह ही रहा था कि तुम चहकीं, "क्या मैं नागिन हूं?”

"नागिन नहीं, तुम तो परी हो, जल-परी। इजिप्ट की क्लियोपेट्रा।”
 
तुम्हारी बोलती आंखें चमकने-सी लगी थीं। मुसकराती हुई।

मैं बातें तुमसे अवश्य कर रहा था, पर मेरी पलकों पर हजारों जिज्ञासाएं थीं। मैं चारों ओर देखता हुआ, कुछ खोज रहा था, तुमसे बातें करता-करता।

“क्या ढूंढ़ रहे हो?”

"मैं इस झील का दूसरा सिरा तलाश रहा हूं। ऐसे ही कुछ और सिरे भी ढूंढूंगा। और अंत में एक ऐसा सिरा खोज निकालूंगा, जहां से सारे कोने एक साथ दीखेंगे...।"

"फिर क्या होगा?"

"फिर वही होगा, जो नहीं होना चाहिए...।”

"यानी !”

मैं कुछ क्षण चुप रहा। फिर सन्नाटा तोड़ता हुआ बोला, “हमारे देश में, यानी हमारे देश के पर्वतीय प्रदेश में अनेक झीलें हैं। जिनमें एक है-नौकुचिया ताल ! यानी नौ कोने वाला तालाब। कहते हैं, जो व्यक्ति एक बिंदु पर खड़ा होकर इन नौ कोनों को एक साथ देख लेता है, वह या तो राजा हो जाता है, या मर जाता है।”

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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