कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
तुम्हें यह सुनना शायद अच्छा नहीं लगा। तुमने बिना गहरी प्रतिक्रिया व्यक्त किए उसी सहज भाव से कहा, "राजाओं का तो दुनिया में जमाना रहा नहीं। अब जहां तक दूसरे विकल्प की बात है, आप आराम से जाइए। नौ नहीं, दस कोने खोज निकालिए। यहां बैठी मैं आपका इंतज़ार करूंगी-क़यामत तक...।”
"च्चऽ ! तुम समझी नहीं। मैं न तो मरना चाहता हूं और न स्वयं राजा बनना। मैं तो केवल तुम्हें क्लियोपेट्रा बनाना चाहता हूं- मिस्र की साम्राज्ञी !”
तुम सहसा हंस पड़ी थीं।
"सारा इजिप्ट मुझे सौंप देंगे? बेचारा हुस्नी मुबारक क्या करेगा?" कुछ सोचती तुम आगे बोलीं, “आप अधिक जानते नहीं, क्लियोपेट्रा के बारे में। बड़ी बिंदास थी। आप सह नहीं पाएंगे....।”
ऊंची घास के पतले तिनके पत्थर के पास तक उग आए थे। मैंने एक-दो अनजाने में तोड़े और उन्हें और छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर पानी पर फेंकता रहा, जो प्रशांत जल की सतह पर तैरते रहे।
थोड़ी देर तक हमारे बीच मौन सन्नाटा रहा। तुम भी शायद सामने खड़े पेड़ों को गिनती रहीं।
तभी शरारती बच्चे की तरह, तुमने फिर एक कंकड़ी पानी पर उसी तरह फेंकी।
चांदी-सी चमकती एक मछली बगल के पत्थर से निकलकर, पानी पर फिसलती हुई ओझल हो गई।
"और कितने पत्थर-कंकड़ हैं तुम्हारे पास?" मैंने पूछा तो तुमने एक हथेली पर दूसरी हथेली रगड़ते हुए मिट्टी साफ की, "बस, अब और नहीं...।"
घास के भीगे तिनकों को मैं दांत से कुतरता, तोड़-तोड़कर फेंकता रहा, किन्हीं विचारों में खोया हुआ।
"अच्छा, बहिरा, तुमने बर्फ़ देखी है पहाड़ों पर?”
"नहीं।”
काहिरा में बर्फ गिरती है?"
"नहीं तो।”
"हमारे यहां पर्वतीय क्षेत्रों में गिरती है। बड़े-बड़े ऊंचे हिमालय पर्वत हैं...।” कहते-कहते मैं चुप हो गया।
"आप कहना क्या चाहते हैं?”
'मैं मछलियों के बारे में बतला रहा था..।'
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