कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
उंगली का इशारा देखते ही वह सहमा-सा, सिमटा-सा पास आ गया। अरे, इसकी भी वैसी ही बूट-पट्टी ! "बैठ जा...!"
कांछा सीमेंट के ठंडे फर्श पर वैसा ही सकुचाया-सा बैठने लगा तो, "नहीं, नहीं, ऊपर बैठ," कहते हुए सैनिक ने बैंच पर बैठने का इंगित किया।
वह और भी सकुचाया और लोहे की बेंच के दूसरे सिरे पर थोड़ी-सी जगह में समाकर बैठ गया।
"कहां का रहने वाला है?"
कांछा की समझ में न आया।
“मैं पूछता हूं, घर कहां है तेरा?" सैनिक ने कुछ ऊंचे स्वर में पूछा। "डोटि-नइपाल।”
"कहां?"
"डडेलीधूरा का पास...गहरडोटी से आगे...।”
"यहां कैसे आया?"
"नउकरी-चाकरी... कुल्लि -मजदूरी...!”
"कहां करता है नौकरी?"
वह मौन देखता रहा।
"अरे, मैं पूछता हूं, नौकरी किसी दुकान में करता है?"
"लाल्ला की...।”
फिर यहां क्या कर रहा है?"
“लाल्ला निकाल दिया...।”
“क्यों निकाल दिया?”
"...."
"नौकरी करेगा?”
उसने स्वीकृति में सिर हिला दिया।
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- कथा से कथा-यात्रा तक
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- इस यात्रा में
- एक बार फिर
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- अक्षांश
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- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
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- कांछा
- सागर तट के शहर