कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
शाम तक वैसा ही भूखा-प्यासा वह बैठा रहा। जब-जब उसे अधिक भूख लगती, मां की याद आ जाती। मां खुद भूखी रहकर भी उसके लिए आले में रोटी छिपाकर रखती थी। रोटी न हो तो मकई होती। ककड़ी, मूली, दाड़िम, अखोड़ पता नहीं कहां-कहां से मांगकर, बटोरकर उसके लिए रखती थी। जब से जेठा दाइ मरा, उसके प्रति मां की ममता और भी अधिक बढ़ गई थी। लोग कहते, उसका बड़ा भाई बीमारी से मरा था, पर मां का कहना था कि वह भूख से मरा था। बीमारी से ठीक होने के बाद पथ्य में देने के लिए उसके पास दो दाने चावल के भी न थे। उसने चुपके से पता नहीं क्या खा लिया था, जिससे उसी रात उसकी मृत्यु हो गई थी...
बारिश अब बंद हो गई थी। तापहीन धूप का टुकड़ा, फटी चादर की तरह मटमैली धरती पर बिछा था। बादल अभी तक छाए हुए थे आसमान पर। पहले वह देर तक प्लेटफार्म पर ही इधर-उधर भटकता रहा। पांव थक गए तो प्लेटफार्म की छत से लगे लोहे के गोल खंभे के सहारे खड़ा हो गया। फिर बैठ गया। बैठे-बैठे पता नहीं कितना समय बीता ! उसकी पथराई पलकें मुंदने लगीं तो बित्ते-भर की जगह पर, कपड़े की गीली पोटली की तरह मुड़ा-तुड़ा वह सिमटकर सो गया। देर तक सोया रहा।
तभी किसी ने डंडे से कोंचा तो वह हड़बड़ाकर जागा। देखा-सामने लंबा-चौड़ा आदमी है-बूट-पट्टी कसा हुआ, “हियां क्या कर रिया रे, जिनावरऽ !"
आंखें मलता वह देखता रहा।
“देखता किया है? उठ हियां से !" उसने डंडे को हल्के से
ऊपर-नीचे हिलाते हुए कहा, “चोर-उचक्के सभी कमज़ातों के लिए यही जगै है...।"
"...।"
“उठ-उठ् !” डंडे की नोक से कोंचकर उठाने लगा तो वह डरे हुए कुत्ते की तरह चुपचाप बाहर निकल गया।
बत्तियां जल चुकी थीं। पीलीभीत की तरफ से आने वाली गाड़ी की प्रतीक्षा में बैंच पर बैठा फौज का एक जवान यह सब देख रहा था। पुलिस का सिपाही चला गया, तब भी वह लड़का प्लेटफार्म के बाहर, नीम के पेड़ के नीचे वैसा ही बैठा रहा। उसके सामने ही बरखा के पानी के कारण हथेली के बराबर नन्ही-सी तलैया बन गई थी, जिसमें फुर्र-फुर्र चिड़ियां नहा रही थीं।
बादल घिर-घिरकर उमड़ रहे थे।
ज्यों ही फुहारें शुरू हुईं, वह थर-थर कांपता फिर प्लेटफार्म की छत की शरण में आ टिका-भय से, आशंका से इधर-उधर झांकता हुआ कि कहीं बूट-पट्टी वाला डंडा उठाए फिर न आ धमके !
"ये डोटियाल दाइ...ऽ !" सैनिक ने न जाने क्या सोचकर उसे आवाज़ दी।
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