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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


एक नौकर और था, उससे कुछ बड़ा, जो लाला के बगीचे वाले घर में ही रहता था अब। एक दिन कांछा घर से लाला के लिए दिन का भोजन ला रहा था, तो शरारत से उसके कान के पास मुंह ले जाकर बोला, “लाला अच्छा आदमी नहिं। बीबी को ससुराल में ही छोड़ रखा है...।” वह अपने आप हंस पड़ा था।

जिस दिन रात को लाला अधिक देसी पी लेता, दुकान पर ही रह जाया करता था।

इस चमक-दमक के बीच कांछा के अबोध मन में कहीं विरक्ति का भाव भर रहा था वितृष्णा का। यह सब क्या?

सारी रात पानी बरसता रहा था। जंग लगी पुराने टीन की टूटी छत जगह-जगह से टपकती रही। जिस कारण कांछा सो न पाया था। सुबह जैसे ही आंख लगी कि किसी ने ज़ोर-ज़ोर से किवाड़ भड़भड़ाए। अचकचाकर जागा वह।

देखा-चौख़ानेदार तहमद और बनियान पहने सामने चट्टान की तरह लाला खड़ा है, बाएं हाथ में काली छतरी थामे पानी से तर ! लाल-लाल आंखों से घूर रहा है।

आंखें मलता हुआ वह अभी देख ही रहा था कि लाला ने आव देखा न ताव। तड़ाक से एक चांटा उसके गाल पर जड़ दिया, "बतासे की औलाद, तू अब तक सो रिया ! दिन कब का निकल आया ! बस के सारे पिसिनजर आज हाथ से निकल जाएंगे। ध्याड़ी मारी गई...!"

कांछा भौंचक-सा गाल मलता रहा, "बाबू साब, ऊपर से पानी आता रहा–अइसेऽ।” छोटे-से हाथ नचा-नचाकर वह बतला ही रहा था कि लाला ने दूसरा चांटा मारा, “पानी के बच्चे, अब बहाना बनाना भी सीख गया है !"

चांटा इतनी ज़ोर का लगा कि उसका माथा झनझना आया। नन्हे-से नंगे पांव थर-थर कांपने लगे। आंखों के आगे अंधेरा !

अपने दोनों हाथ जोड़ता हुआ, क्षमा-याचना के स्वर में बोला, “परभु, गल्ती होइ गिया। माफी...परभु !” उसका कंपित स्वर लड़खड़ा आया।

“सूरज छत पर चढ़ आया। टेसन की चा की सारी दुकानें कब से खुल गईं। आज की सारी गाहकी तेरी मां की...।”

लाला ने मुठिया के पास ही बटन दबाकर, झप्प-से गीली छतरी बंद कर दी। पतली नुकीली नोक की तरफ से, किवाड़ के सहारे उल्टी खड़ी कर दी, “सूअर की औलाद, देखता क्या है मेरा मुंह ! जा, जल्दी-जल्दी दरबज्जे खोल। बुहारी लगा...।”

अभी वह सिरकी से सड़ाक-सड़ाक झाडू लगाकर धूल उड़ा ही रहा था कि खादी के मैले झाड़न से तराजू और बड़ों पर जमी धूल झाड़ते हुए लाला ने कहा, "बछिया के ताऊ, जल्दी-जल्दी हाथ चला... अच्छा, छोड़ इसे। बाद में आंगन पै बुहारी लगइयो, पैले अंगीठी सुलगा। कौले डाल...।”

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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