कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
“क्या लेगा महीना भर का?" लाला ने पूछा।
"जो माई-बाप देगा, हजूर लेई लेगा !” जबर बहादुर ने उत्तर दिया।
"नकद चार रुपिया महीना देगा। खाना-पीना देगा। कपड़ा-लत्ता देगा। चाय-साय, बीड़ी-सीड़ी सब देगा। लाला जितना-जितना कहता जा रहा था, कृतज्ञता के भार से दोनों झुकते जा रहे थे।
क्या नाम है दाई तेरा?" लाला को जैसे कुछ याद आया।
"कांछा।”
“कांछा?” लाला अपना पोला मुंह फुलाता हुआ जोर से हंस पड़ा, “यह क्या होता है?"
"नाम है हजूर..!" जबर बहादुर ने कहा।
"तो अब खड़ा क्यों है? काम पर लग जा अभी से। नौकरी पक्की...।" लाला ने सामने रखी रीती बाल्टी की ओर इंगित किया, "इसे बाहर कमेटी के नल पर लगा दे, भर जाए तो उठा लेना।” उसकी ओर देखते हुए तनिक रुककर कहा, “उठा सकेगा?"
कांछा उसकी भाषा अधिक समझ न पाया। फिर भी इतना तो पल्ले पड़ ही गया कि लाला बाल्टी भरने का आदेश दे रहा है।
लाला को जैसे कुछ स्मरण हो आया। तनिक पसीजता हुआ बोला, “छोकरे, पूरी नहीं उठा पाएगा। इसलिए आधी-चौथाई ही लान., समझे !" 'समझ' पर जितना अधिक जोर था, उससे अधिक सहानुभूति !
"लालाजि, यह गरीब है.. अब आप हि माई बाप हो... !” हाथ जोड़ता हुआ जबर बहादुर बोला, “जैसे तुम रखेगा, यह रहेगा...।”
"अरे, हम कौन कह रहे हैं कि यह अमीर है। तुम फिकर मत करो। छोकरा अपने घर की तरह रहेगा.. हां, चोरी-चकारी तो नहीं करेगा?"
"न्नां, न्नां सेठजिऽ। ऐसा नहीं ! छोरा ईमानदार है। चोरि नहीं करेगा। तुम तो माई बाप हो। चोरि करेगा तो परलोक नहीं बिगड़ेगा ! नर्क में नहीं जाएगा !" हाथ जोड़कर जबर बहादुर ने उत्तर दिया।
“तुम क्या करेगा?"
"नउकरी-सौंकरी करेगा-कुल्लिगिरी..." हाथ जोड़कर वह चला गया।
कांछा का सारा दिन जूठे बरतन मांजने, जूठी पत्तलें उठाने में ही बीत जाता। लाला ने अपनी उतारी हुई फटी क़मीज़ दे दी थी, जिसके अंदर तीन व्यक्ति आसानी से समा सकते थे। सामने ‘शर्मा रेडीमेड वस्त्र भंडार' से नीली जीन की एक हल्की-सी जांघिया ख़रीद दी थी।
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