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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


मामा गाय-डंगरों के रहने के लिए नया खरक बना रहे थे-नई झोंपड़ी। सारा दिन वह छत ढकने के लिए सूखी घास सारता रहा। चिरी, अधचिरी बल्लियां, तख्ते खींचता रहा, जिससे दोनों नन्ही-नन्ही हथेलियां छिल गई थीं। जगह-जगह फफोले उभर आए थे...।

एक दिन शाम को बटिया के किनारे वह आग जलाए बैठा था। डंगर इधर-उधर चर रहे थे। आसमान काले बादलों से भरा था। वर्षा के जैसे आसार थे। फुर-फुर ठंडी हवा बह रही थी। तन पर लटके चीथड़े उड़ रहे थे। सर्दी से ठिठुरता हुआ, पहले वह आग सेंकता रहा। तन में ताप न आया तो बांज के पत्ते की शुल्फई बनाकर उसमें तमाखू भरकर उसके ऊपर एक अंगारा रख दिया और नीचे से सांस लेता हुआ धुआं निगलने का प्रयास करने लगा।

थके-से कुछ राहगीर बटिया से जा रहे थे। खमाखम ! जलती आग देखकर सहसा ठिठक पड़े, तमाखू पीने के लिए।

कहां जा रहे हैं?" उसने जिज्ञासा से पूछा।

“दुअर.. कालि गंगा पार.. बरमदेव मंडी... हिंदुस्तानी राज में..!"

क्या करोगे वहां?"

“कुल्ली, मज़दूरी, नउकरी।”

''मेरे को भी कुल्ली, गज़दूरी मिलेगी...?" कुछ अतिरिक्त उत्साह से वह बोला।

वह अभी कह ही रहा था कि सब एकाएक हंस पड़े, “तू करेगा कुल्लिगिरी? घुघता साल्ला...”

वह अबोध भाव से उनके हंसते चेहरे ताकता रहा।

“यहीं मजूरी क्यों नहीं करता?” गोल दायरे में आग के किनारे बैठे तरुण ने सहानुभूति से पूछा।

अपने छोटे-से हाथ नचाता हुआ वह बोला, “यहां कहां नउकरी-चाकरी?...दिन-रात काम-काम् ! उस पर मामी रोटी नहीं देती...।" वह रुआंसा हो आया।

"आमा नहीं?"

"नां...?"

"बाज्या -बाप...?"

"नहिं।”

“भाई-बहन?"

उसने सिर हिलाकर 'नहीं' कहा।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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