कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
उसके नए पिता ने गलत नहीं कहा था। नीचे गोठ में बादामी रंग की बूढ़ी बकरी अवश्य थी, जिसकी तीन पाठियों में अब मात्र एक ही शेष थी-जिसकी चमकीली, चिकनी पीठ पर काले रंग के बड़े-बड़े चकत्ते थे। खुरों से ऊपर तक चारों पांव भी एकदम स्याह काले। किनमोड़े की कंटीली हरी पत्तियों को चबाती हुई वह दिन-भर मिमियाती रहती। शायद मां का सारा दूध दुह लिया जाता और उसके लिए कुछ भी बच नहीं पाता। घास भी भरपेट नहीं। तभी तो पीठ से पेट मिला रहता था ! खूटे-जैसे सींग निकल आए थे, पर किसी को मारती न थी। जिस खंभे के सहारे बंधी रहती, उसे ही कभी सींग से खुरच लिया करती थी।
पर इसके साथ खेलने को कभी भी उसका मन न हुआ। जैसे घर की अन्य वस्तुएं पराई लगीं, ठीक उसी तरह यह बकरी भी। अतः दूर से ही देखकर रह जाता। अजीब-से विरक्त भाव से।
मां के प्रति भी अब कहीं उतना अपनापन नहीं रह गया था। कहीं दरार-सी पड़ गई थी–दूरी की। उसे लगता उसकी अपनी अन्य वस्तुओं की तरह मां भी तो छिन गई है। रात को कभी नींद उचटती तो भय-सा लगता। बिछौने पर वह अपने को अकेला पाता, पता नहीं मां उठकर कहां चली जाती थी !
घर का कोई भी बच्चा उसके साथ खेलता न था। सब दूर-दूर से ही, अचरज से उसकी ओर देखा करते, जैसे वह कोई अजूबा हो।
इन अनजान, अपरिचितों के घर में उसे क्यों ले आई मां? यहां रहकर उसे क्या सुख मिलता होगा? इससे अच्छा था, अपना वही पुराना घर ! कम-से-कम अपनापन तो था। मां प्यार तो कर लिया करती थी ! काजु, घ्यौ के साथ खेलता हुआ वह अपने को कितना खुश अनुभव करता था ! पड़ोस की बुड़ि आमा कभी-कभी अपने पेड़ से तोड़कर संतोले दे दिया करती थी...
उसे लगता उसकी इन सारी परेशानियों का कारण मात्र वही व्यक्ति है, जिसने अपने भारी-भरकम बूटों से उसके नन्हें घरौंदे को कुचल दिया है। बिल्ली की जैसी मूंछों वाला यह व्यक्ति उसे कभी भी अच्छा नहीं लगा था। उसकी बकरी खाने के बाद तो बिल्कुल भी नहीं !
इतना सब होने के बाद भी भरपेट खाने को नहीं !
“कल से कांछा गाय-बकरियों को चराने जंगल ले जाएगा।" उसने एक दिन नड़कते हुए आदेश दे दिया था।
उसे गाय-बछियों को चराने से उतना भय न लगता, जितना वहां के भीषण, अंधेरे वनों से। कहते हैं, मेलिया बाघ हर रोज किसी न किसी पशु को उठाकर ले जाता है-दिन-दोपहर-सबके सामने।
सुबह मां ने विरोध किया, बाघ-भालू कहीं उसे ही उठाकर ले गए तो वह क्या करेगी? इस पर नए बाप ने मुंह फाड़कर हंसते हुए कह दिया था, "ले ही जाते तो क्या अच्छा नहीं रहता ! इस करमजले का क्या करें? घिस-घिसकर चंदन लगाएं, क्यों?"
अभी तीसरा दिन भी न बीता था कि सचमुच एक बाघ दुधारू गाय को उठाकर ले गया था। यह समाचार मिलते ही घर में भूचाल आ गया था। हर कोई कांछा पर बरस रहा था, “सो गया होगा कानि का छोरा ! तभी तो बाघ उठा ले गया। जागा होता तो शोरगुल न मचाता। आग न जलाता। और तब जानवर डरकर भाग न जाता !"
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