कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
|
8 पाठकों को प्रिय 61 पाठक हैं |
हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
लगभग सवा साल इसी तरह बीता। तभी एक दिन घर से मां आई और उसे साथ ले गई।
कर्कशा मामी को जाते समय न जाने क्या सूझा ! बकरी की यह पाठी भी साथ बांध दी थी। मां मना करती रही, पर वह न मानी, “बरस-भर मिहनत के बाद इत्ता तो ले जा रे !"
मूंज की रस्सी गले पर चुभती थी, इसलिए उसने बाड़ में लगा हरा रामबांस कूटा और उसकी रस्सी बना ली। गहत-भट के भुने जो भी दाने खाने को मिलते, पहले वह बकरी के मुंह की ओर ले जाता, फिर खुद खाता। जाड़ों में पता नहीं, कहां-कहां से बटोरकर हरी घास के तिनके लाता। रात को अपने फटे कंबल का एक हिस्सा उसकी पीठ पर डाल देता। जब तक वह चुपचाप बैठी रहती, किंचित ताप मिलता, किंतु ज्यों ही हटती कंबल भी खिसक जाता।
उसके धूप तापने के लिए आंगन में बित्ते-भर की जमीन उसने साफ़ कर दी थी। अपने छोटे-छोटे हाथों से उसे गोबर से लीपकर, उसके ठीक बीचोंबीच अंगूठे के बराबर एक खूटा गाड़ दिया था, जिसके सहारे बकरी बंधी रहती थी। ज्यों ही धूप का टुकड़ा सरकता, वह उसे दूसरी जगह बांध देता था।
रात को आग के पास बैठी मां मड़वे की काली-काली रोटियां सेंकती तो वह उसे गोदी में बिठाए हथेलियां गर्म कर, सहलाता रहता। बकरी आंखें मूंदे चुपचाप बैठी रहती। भीषण सर्दी के कारण अकसर बकरी की नाक छोटे बच्चों की तरह बहती... चूल्हे के पास से ठंडे पानी का छींटा कभी भूल से भी शरीर पर पड़ जाता तो ज़र्रर्र-से सारे बाल खड़े कर स्वयं झटपट उठ पड़ती...
उसके दाहिने पांव का आगे वाला आधा खुर जोगिया रंग का था। त्रिशूली थान का बूढ़ा पुजारी कहता, 'यह पाठी तो देवी को चढ़ेगी...।'
देवी को तो नहीं चढ़ी वह, हां, देवी गुरंग एक दिन अवश्य खा गया था उसे !
दूर का रिश्तेदार था–हिंदुस्तानी फ़ौज की गोरखा रेजीमेंट में सिपाही। रिटायर होने के बाद अब अपने घर आया था-डोटि-नइपाल। खेती-पाती करके अपना जीवन-यापन करता था। एक-दो बार पहले भी वह यहीं से होकर कहीं गया था और रात को रुका भी था।
मां के हर काम में रुचि लेता। कहता, “मन बहादुर जिंदा होता तो क्या अब तक घर नहीं आता? बरमदेव मंडी में ही मरा था वह। हमारे डंबर बहादुर थापा ने अपनी आंखों से देखा था। उसकी लाश कालि गंगा में बहा दी थी उसने...!"
|
- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर