कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
मुझे बड़ा अटपटा-सा, अजीब-सा लग रहा था। जिन लोगों को मैं भली-भांति जानता-पहचानता नहीं, उनके घर जाना मेरे लिए कम असमंजस का कारण नहीं था। फिर भी मेरे पांव बढ़ रहे थे और मैं चल रहा था।
जब आंगन में पहुंचा तो देखा वह दरवाजे पर खड़ी है।
"आपने इत्ती देर कर दी !" वह उलाहने से बोली, “सब आपकी प्रतीक्षा में बैठे हैं...।"
‘सब' शब्द से मेरे मन की परेशानी कुछ और बढ़ गई।
उसने गहरे नीले रंग की साड़ी पहनी थी। उसी रंग के अन्य परिधान थे। इस समय उसका चेहरा सुबह की तरह ज़र्द नहीं, ताजे फूल की तरह खिला था।
"आज बेबी का जन्मदिन है न !' मुस्कराती हुई वह बोली, “आप नहीं आते तो हमें बहुत बुरा लगता।"
एक सजे-संवरे कमरे में वह ले गई। सबसे उसने परिचय कराया। मेरी सुविधाओं का वह इतना ख्याल रख रही थी कि कभी-कभी मुझे असुविधा-सी अनुभव होने लगती।
मैंने कलाई पर बंधी घड़ी की ओर देखा।
"अभी तो सेनिटोरियम जाना है...।”
"तो शाम को आइए, छह-सात तक, कॉफ़ी हमारे साथ पीजिए। आप हमारे घर आ सकें तो हमें बड़ी खुशी होगी, सच !” वह इतनी बड़ी होकर भी अबोध बच्ची की तरहं कह रही थी।
अपना पता देकर वह चली गई। मुझे आश्चर्य हुआ, न मैं उसके पति से कोई बात कर सका, न बेबी से ही। दरअसल इतना कुछ बोल गई कि दूसरों को समय ही न मिला।
शाम को सेनिटोरियम से लौटा तो काफी थका हुआ था। मन नहीं था कहीं जाने को। आरामकुर्सी पर आंखें बंद किए निढाल पड़ा रहा।
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