कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
मैं देखता हूं-सूरज डूब रहा है। झील के नीले-हरे ठंडे जल का रंग धीरे-धीरे सिंदूरी हो रहा है। वृक्षों की छाया लंबी होने लगी है। पर बच्चे मुग्ध भाव से खेलने में मस्त हैं। तभी अदित तंद्रा-सी तोड़ता है, “घर चलें बाबूजी ! शाम को आपसे मिलने कुछ लोग आने वाले हैं..." कुछ सोचता हुआ वह आगे कहता है, “करतार का भी सुबह फोन आया था। आप शायद नहा रहे थे। परसों नौ तारीख को आपका ‘बर्थ-डे' है न ! वह कह रहा था, हमारे रेस्तरां में सेलिब्रेट करेंगे..."
मैं हंस पड़ता हूं, “उसे कैसे पता...?”
"आपकी किसी किताब में देखा होगा !"
“पर मैं तो कभी मनाता नहीं... घर में भी नहीं। तुम जानते ही हो।” मेरा वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि किंचित खीझकर अदित कहता है, “आप भी तो बाबूजी ! कितनी श्रद्धा से कह रहा था। किसी का मन रखने के लिए ही सही... हम भी तो उसे दस तरह से ऑब्लाइज करते हैं। उसके रेस्तरां में हिमालय की जो ऑयल-पेंटिंग है, मैंने ही बनाकर दी है। बाजार से ख़रीदता तो कितने हज़ार क्रोनर की होती...”
दूसरे दिन करतार का फ़ोन आता है, “अंकल जी, खाने में आप क्या-क्या लेंगे?”
"कुछ विशेष नहीं," मैं उत्तर देता हूं, “रोज़ की तरह जो बनाते हो, वही ले लूंगा।"
अदित कहता है कि उसने दस-पंद्रह और लोगों को भी इसी निमित्त आमंत्रित किया है। पूरी तैयारी में जुटा है।
नियत समय पर वहां पहुंचते हैं।
रेस्तरां क्या है, पूरा ‘लघु भारत'। गणेश जी की प्रतिमा। भीतर त्रिमूर्ति। ताजमहल। दीवारों पर मधुबनी चित्र। भोजन की मेज़ पर इतने सारे व्यंजन। आंखें खुली-की-खुली रह जाती हैं। करतार स्वयं परोसने लगता है। "अंकल जी, यह लीजिए... अंकल जी वह... आपके लिए ही बनाया है-विशेष रूप से !" वह मुर्गे की एक टांग, गाढ़े गर्म शोरबे के साथ मेरी प्लेट पर परोसता है। "बतलाइए, कैसा बना है? मैंने खुद किचन में खड़े होकर रोस्ट किया है।”
अभी मैं खा ही रहा होता हूं कि वह एक गर्म नान का टुकड़ा मेरी प्लेट पर रखता है। पास आकर धीरे-से कहता है, “ऐसा अच्छा मीट आपने कम खाया होगा..."
मैं कुछ उत्तर दें, उससे पहले वह चहक पड़ता है, "यह चिकन नहीं अंकल जी ! जो पक्षी यहां उड़कर आते हैं न, उनमें से एक चुपके से पकड़ लिया था। आपके ‘बर्थ-डे' पर 'स्पेशल डिश' के रूप में। गर्म मसालों में मैंने खुद भून-भूनकर बनाया है..."
मेरा हाथ जहां पर था, वहीं ठहर जाता है। क्या उत्तर दें, सूझता नहीं, “यह क्या... !” इससे अधिक मैं कुछ कह नहीं पाता।
कहानी का तीसरा पहलू यानी तीसरा आयाम हो सकता है-सगीर मियां से जुड़ी घटनाएं।
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- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर