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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


अपनी रौ में विस्तार से बतला ही रहा था कि मैंने देखा--यह लड़की सहसा भावुक हो आई है और अपनी हथेलियों में मुंह छिपाकर चुपचाप रो रही है। थोड़ी ही देर में झटके के साथ उठकर, 'सॉरी' कहती हुई बाहर निकल पड़ती है।

यह क्या? मैं आश्चर्य से देखता रह जाता हूं। शायद मेरी किसी बात से इसके मर्म पर आघात लगा हो।

रात को यों ही बातों में अदित बतलाता है कि इसका स्वभाव ही कुछ ऐसा है। किसी हद तक असंतुलित। यों पुरुष जाति से इसे एक प्रकार से गहरी घृणा है। पिछले दिनों एक सड़क दुर्घटना में इसके पिता की मृत्यु हो गई थी, परंतु यह शव को देखने तक नहीं गई।

“ऐसा क्यों...?" अभी मैं कह ही रहा था कि वह बोल पड़ता है, “यह बतलाती है कि सात-आठ साल की उम्र में इसके साथ एक हादसा हो गया था। शायद पिता ने ही वह अपराध किया था। तब से एक प्रकार से यह विक्षिप्त-सी हो गई है। ऐसे लोगों की संख्या यहां बहुत बतलाई जाती है, परिवार के अपने ही बुजुर्गों द्वारा जिनका शोषण होता रहता है...”

एक रात अपने कमरे में अकेला बैठा, देर रात्रि के कार्यक्रम देख रहा था। टीवी पर एक विशेष कार्यक्रम का सीधा प्रसारण हो रहा था। स्टूडियो में अनेक फ़ोन लगे थे। छोटे-छोटे बच्चे बतला रहे थे कि किस तरह उनके अपने ही घरों में उनके साथ यौनाचार हो रहा है। रात के दो बजे तक भी यह सिलसिला रुकता नहीं, तो कार्यक्रम के संचालक समयाभाव के कारण बीच में ही इसे बंद कर देते हैं।

मैं माथा पकड़कर बैठ जाता हूं। हे भगवान ! यह कैसा मानव-लोक है !

इस कहानी के दूसरे पक्ष का भी एक और आयाम हो सकता है। इसी निमित्त एक और सत्य से साक्षात्कार !

"यहां के लोग पशु-पक्षियों से कितना प्यार करते हैं," अदित बतलाता है, “पक्षियों को मारना तो दूर, उन्हें सताने मात्र की सूचना से ही कठोर दंड दे दिया जाता है..."

अभी उस दिन कॉलजुहान रोड पर चलते-चलते एक तरुण टकराता है। अदित परिचय कराते हुए कहता है, “भारत से पिताजी आए हैं...”

वह सहसा झुककर दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता है। यह देखकर मुझे अच्छा लगता है कि विदेशों में रहने पर भी अपने लोगों में अभी अपनापन बचा है। हम भारतीय भले ही दुनिया में कहीं रहें, परंतु अपनी भारतीयता भूलते नहीं।

बाद में पता चलता है कि करतार नाम का यह तरुण यहां एक रेस्तरां चलाता है-'डिवाइन इंडिया' नाम से। विशुद्ध भारतीय भोजन के लिए यह सारे नॉर्वे में विख्यात है।

उस दिन छुट्टी थी शायद। बच्चों के साथ हम सब लोग झील पर गए थे-‘पिकनिक' के लिए। पक्षियों के साथ बच्चे निद्वंद्व भाव से खेल रहे थे। जहां-जहां वे दौड़ते हुए जाते, पक्षी भी लपक-लपककर उनके साथ-साथ हो लेते। उनके लिए आज एक विशेष प्रकार का भोजन वे बाज़ार से ख़रीद कर लाए थे।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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