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विराटा की पद्मिनी

वृंदावनलाल वर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7101
आईएसबीएन :81-7315-016-8

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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...


:१०६:


कुंजरसिंह की तोप का वह अंतिम गोला था। उसे दागकर कुंजरसिंह अपनी तोपों को नमस्कार कर खोह की ओर तेजी के साथ आया। खोह के बाहर उसे वीणा-विनिदित स्वर में सुनाई पड़ा।

मलिनिया, फलवा ल्याओ नंदन वन के।

वीन-वीन फुलवा लगाई बड़ी गम;
उड़ गए फुलवा, रह गई बाम।'
मलिनिया, फुलवा ल्याओ नंदन वन के। 'उठो चलो।'

कुंजरसिंह ने खोह में फंसकर कुमुद से कहा, 'मुसलमान घुस आए। हमारे सव सैनिकों ने जौहर कर लिया है।'
कुमुद खड़ी हो गई। मुसकराई। परंतु आँखों में एक विलक्षण प्रचंडता थी। बोली, 'सबने जौहर कर लिया है! सबने? अच्छा किया। चलो, कहाँ चलें?'

'नदी के उस पार गढ़ी के पूर्व की ओर से। अभी वहाँ कोई नहीं पहुंचा है। हम दोनों चलेंगे।'
'हाँ, दोनों चलेंगे उस पार; परंतु अकेले-अकेले।'

'मैं समझा नहीं।' कुंजरसिंह ने व्यग्रता के साथ कहा। 'मैं उस ओर से जाऊँगी, जहाँ मार्ग में कोई न मिलेगा।' कुमुद दृढ़ता के साथ बोली, 'आप उस ओर से आएँ, जहाँ जौहर हुआ है। हम लोग अंत में मिलेंगे।'

और उसने अपने आँचल के छोर से जंगली फूलों की गूंथी हुई एक माला निकाली और कुंजर के गले में डाल दी। उस माला में फूल अधखिले और सूखे थे।

कुंजरसिंह ने कुमुद को छाती से लगा लिया। कुमुद तुरंत उससे अलग होकर बोली, 'यह मेरा अक्षय भंडार लेकर जाओ, अब मेरे पास और कुछ नहीं।' कुमुद के आँसू आ गए। उसने उन्हें निष्ठुरता के साथ पोंछ डाला। थोड़ी दूर पर लोगों की आहट सुनकर कुमुद ने आदेश के स्वर में कहा, 'जाओ। खड़े मत रहो। मुझे मार्ग मालूम है।' फिर जाते-जाते मुड़कर बोली, 'मेरा मार्ग निःशंक है; तुम अपना असंदिग्ध करो।'

'मैं अभी आकर मिलता है। नम चलो।' कुंजरसिंह ने कहा। कुमुद तेजी के साथ एक ओर चली गई और दूसरी ओर तेजी के साथ कुंजरसिंह।

उन दोनों के चले जाने के थोड़ी देर बाद अलीमर्दान अपने लहूलुहान सैनिकों के साथ आ धमका। जब वहाँ कोई न मिला, उसने अपने सैनिकों से कहा, 'यहीं कहीं है। इन चट्टानों में तलाश करो। मैं इधर देखता हूँ। कुछ लोग इधर से आनेवालों को रोकने के लिए मुस्तैद रहना।'

अलीमर्दान और उसके कुछ सैनिक इधर-उधर ढूँढ़ने-खोजने लगे। जिस ओर कुंजरसिंह गया था, उसी ओर अलीमर्दान गया। एक ऊँची चट्टान पर खड़े होकर अलीमर्दान ने धीरे से अपने निकटवर्ती एक सैनिक से कहा, 'वह देखो, धीरे-धीरे उस ढालू चट्टान की तरफ जा रही है। कमाल है, देखो।'

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