ऐतिहासिक >> विराटा की पद्मिनी विराटा की पद्मिनीवृंदावनलाल वर्मा
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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...
:९५:
उसी दिन राजा देवीसिंह ने देखा कि गोलाबारी केवल विराटा की तरफ से ही नहीं हो रही है, किंतु अलीमर्दान की तोपें गोले उगल रही हैं।
रामनगर के नीचे गहरे नाले के एक संकीर्ण भरके में लोचनसिंह के पास देवीसिंह और जनार्दन आए। देखते ही लोचनसिंह ने कहा, 'मालूम होता है, अलीमर्दान और कुंजरसिंह का मेल हो गया है। अब तो यहाँ छिपे-छिपे नहीं लड़ा जाता।'
देवीसिंह पास आकर बोला, 'हमारी तोपें रामनगर से अलीमर्दान की छावनी पर आग उछालेंगी। परंतु आड़-ओट के कारण कुछ हो नहीं पाता है। व्यर्थ ही गोला-बारूद खराब हो रहा है। यदि किसी तरह अलीमर्दान को मुसावलीपाठे की ओर हटा सकें और विराटा की गढ़ी को हाथ में कर लें, तो स्थिति तुरंत बदल जाए।'
'मैं अलीमर्दान को मुसावलीपाठे से हटा दूंगा।' लोचनसिंह ने कहा।
देवीसिंह बोले, 'आप भरकों को ही पकड़े रहिए। मैं किनारे-किनारे आड़-ओट लेता हुआ विराटा पर धावा करता हूँ। आप भरकों में से धावा बोलकर हमारी टुकड़ी की रक्षा करते हुए बढ़िए। जनार्दन मुसावलीपाठे पर हल्ला बोलें। अलीमर्दान की सेना दो ओर से दबोची जाकर मैदान पकड़ेगी। तब खूब खुलकर हाथ करना। इस बीच में हम लोग विराटा गढ़ी को धर दबाएँगे और वहाँ से अलीमर्दान का सफाया कर देंगे।
लोचनसिंह ने अस्वीकृति के ढंग पर कहा, 'इस तरह की सलाहें सदा बनती और बिगड़ती हैं। मैं तो इस तरह की लड़ाई लड़ते-लड़ते थक गया हूँ। लड़ना हो, तो अच्छी तरह से खुलकर लड़ लेने दीजिए। यहाँ बैठे-बैठे रेंगते-रेंगते फिट-फिट करने से तो मर जाना अच्छा है।'
देवीसिंह ने उत्तेजित होकर आश्वासन दिया, 'नहीं, आधी घड़ी के भीतर ही इसी योजना पर काम होगा। परंतु पहले हमें नदी के किनारे अपनी टुकड़ी के साथ हो जाने दो। उसके बाद तुम जोर का हल्ला बोलकर आगे बढ़ो। तुम्हारे हल्ले के पश्चात् तरंत ही जनार्दन मुसावलीपाठे के पीछे से हमला करेंगे।'
लोचनसिंह ने कहा, 'मैं अभी बढ़ता हूँ। दीवानजी अपनी जानें; परंतु आज आगे पैर रखकर पीछे हटाने का काम नहीं है।'
जनार्दन इस स्पष्ट व्यंग्य से आहत होकर बोला, 'आप अपने पैरों की खबर लिए रहिएगा, मेरे पैरों की उँगलियाँ एड़ी में नहीं लगी हैं।'
लोचनसिंह का शरीर जल उठा। परंतु देवीसिंह ने जनार्दन को तुरंत वहाँ से निर्दिष्ट कार्य के लिए भेज दिया।
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