लोगों की राय

ऐतिहासिक >> विराटा की पद्मिनी

विराटा की पद्मिनी

वृंदावनलाल वर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7101
आईएसबीएन :81-7315-016-8

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

364 पाठक हैं

वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...


:८६ :

सवेरे सबदलसिंह कुंजर के पास आया। उदास था। बिना किसी भूमिका के बोला, 'रामनगर पर देवीसिंह का अधिकार हो गया है। आपने रामनगर पर गोले क्यों बरसाए?'
कुंजरसिंह ने उत्तर दिया, 'पहले मेरे मन में भी कुछ इसी तरह की कल्पना जगी थी, परंतु पीछे विश्वास हो गया कि रामनगर पर अभी देवीसिंह का दखल नहीं हुआ है।'
'परंतु नरपतिसिंह दूसरी ही बात कहते हैं।' 'वह धोखे में आ गए हैं।' 'और गोमती?' 'वह भी; और रामदयाल भी। वह छद्मवेश में था।' 'रामदयाल कहता था कि धोखा-सा था। मान लीजिए, देवीसिंह नहीं थे, तो वह इस तरह क्यों और कैसे आए?'

'कैसे आए वे लोग, सो तो आपको मालूम ही हो चुका है; परंतु मुझे उस व्यक्ति के देवीसिंह होने में बिलकुल संदेह है।' ।
'यदि वह देवीसिंह थे तो बहुत करके गोमती के लिए आए होंगे। मैं नरपति से सब हाल सुन चुका हूँ। केवल इतनी बात प्रकट करने के लिए आने की अटक न थी कि रामनगर उनके हाथ में आ गया है। इस समाचार को तो वह किसी के भी द्वारा कहला सकते थे। रामदयाल उनकी सेवा में रहा है, नरपति विश्वास दिलाते हैं। परंतु यह सब फिर क्या और क्यों हो पड़ा, कुछ समझ में नहीं आता। नरपति त्यागी-विरागी पुरुष हैं। उनके दिमाग में सांसारिक बातों को यथावत् स्थान नहीं मिलता। कुमुद कहती है कि धोखा-सा हो गया है। शायद ऐसा ही हो।'

'मैं आपको विश्वास दिलाता है।' 'खैर, दो-एक दिन में मालम हो जाएगा: परंत यदि वास्तव में रामनगर देवीसिंह के अधिकार में है, तो उस ओर गोलाबारी करना आत्मघात के समान होगा।'

'और यदि रामनगर अलीमर्दान या रानियों के हाथ में है, तो उस गढ़ पर गोले न चलाना आत्मघात से भी बुरा सिद्ध होगा।'

सबदल किंकर्तव्य-विमूढ़ था। कुछ क्षण पश्चात बोला, 'यदि देवीसिंह का हमसे कुछ अपराध भी हो जाएगा तो हम क्षमा माँग लेंगे।' निस्सहायों की-सी आकृति बनाकर उसने कहा, 'इस समय हम किसी को बाहर भेजकर इस बात का ठीक-ठीक अनुसंधान भी नहीं कर सकते।'

कुंजर ने अपनी बात की पुष्टि का प्रण कर लिया था। बोला, 'यदि आपकी इच्छा हो, तो मैं तोपों का मुँह मुरका दूँ?'
सबदल तोपों का कल भार कुंजर को सौंप चुका था। वह सहमत न हुआ। कहा, 'तोपों के संचालन का संपूर्ण कार्य आपके हाथ में है। मैं हस्तक्षेप नहीं करना चाहता।

असली बात एक-आध दिन में ही मालूम हो जाएगी। यदि वास्तव में रामनगर देवीसिंह के अधीन हो गया है, तो कुछ-न-कुछ समाचार किसी-न-किसी प्रकार हमारे पास बिना आए न रहेगा, तब तक आपको जैसा उचित जान पड़े, करिए।'

सबदलसिंह चला गया। दो-एक दिन में क्या होगा, इसे वह या कोई भी उस समय नहीं जान सकता था।

आँख से ओझल होते हुए सबदल को कुंजर ने देखा। सरल, दृढ़ व्यक्ति। कुंजर को
झूठ बोलने के कारण अपने ऊपर बड़ी ग्लानि हुई। तुरंत ही उसने मन में कहा-इसने जितना विश्वास मेरा कर रखा है, उससे कहीं अधिक मूल्य इसे दूंगा। इस गढ़ी की रक्षा में अंतिम श्वास की होड़ लगाऊँगा। इसे भ्रम में डालने के सिवा मुझे कोई और उपाय न सूझा। क्या करूँ, देवीसिंह ने झूठ बोलने के लिए विवश किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book