ऐतिहासिक >> विराटा की पद्मिनी विराटा की पद्मिनीवृंदावनलाल वर्मा
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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...
रामदयाल बहुत तेजी के साथ भांडेर गया और दिन-ही-दिन में नवाब के सामने जा पहुंचा। दिल्ली से एक बहुत जरूरी फरमान आया था कि तुरंत संपूर्ण सेना लेकर दिल्ली आ जाओ। इस फरमान को आए हुए कई दिन हो गए थे। अलीमर्दान को राजा देवीसिंह की तैयारियों की खबर लग चुकी थी, इसलिए और शायद किसी और कारणवश भी अलीमर्दान स्वयं तो दिल्ली की ओर रवाना नहीं हुआ, परंतु उसने अपनी सेना के एक काफी भाग के साथ कालेखाँ को दिल्ली की ओर भेज दिया। वह भांडेर में ही बना रहा। राजा देवीसिंह को कुछ समय तक रोके रहने के लिए उसने एक चाल चली; दलीपनगर को संधि का प्रस्ताव भेजा। कहलवाया कि दो निकटवर्ती राज्यों में मेल रहना चाहिए। लड़ाई की तैयारी बंद कर दो, नहीं तो अनिवार्य संकट में पड़ जाओगे। राजा इसका उत्तर नहीं देना चाहता था, परंतु जनार्दन नहीं माना। उसने एक बड़ी मीठी चिट्ठी । लिखवाई,जिसके लंबे वाक्यों का सार यह था कि यहाँ भी तुरंत लड़ डालने की किसी की अभिलाषा नहीं है। इस संधि-प्रस्ताव और उसकी अर्द्ध-स्वीकृति पर दोनों को संदेह था।
देवीसिंह रानियों से लड़ने जा रहा था। जानता था कि अलीमर्दान उत्तर से सहायता के लिए आएगा, तब इस संधि की रद्दी के टुकड़े से भी बढ़कर प्रतिष्ठा न होगी। अलीमर्दान को विश्वास था दलीपनगर मेरे चकमे में आ गया है।
रामदयाल को ऐसी हड़बड़ी में आता देखकर अलीमर्दान को आश्चर्य नहीं हुआ,
क्योंकि वह समय ऐसा था कि अचेती और अनजानी उलझनें अकस्मात् उपस्थित हो जाया
करती थीं।
एकांत पाने पर रामदयाल ने कहा, 'हुजूर, मामला बहुत टेड़ा है। राजा देवीसिंह
की सेना रामनगर पर चढ़ी चली आ रही है।'
'कब?' अलीमर्दान ने पूछा।
'आज पालर के करीब थी।' उसने उत्तर दिया, 'कल संध्या तक रामनगर और विराटा पर
दखल हो जाने का भय है।'
'मेरी आधी सेना तो कालेखाँ के साथ दिल्ली चली गई है।' 'परंतु जो कुछ सरकार के
पास है, वह सरकार के शत्रुओं के दाँत खट्टे करने के लिए बहुत है।'
'तम लोगों के पास कितनी सेना है?'
रामदयाल ने अपनी सेना का कता अलीमर्दान को बतलाया। अलीमर्दान ने कहा, 'तब तक
इतनी सेना से लड़ो। काफी है। कुछ समय बाद हमारी कुमुक पहुँच जाएगी।'
रामदयाल घबराकर बोला, 'तब तक हम लोग शायद बिलकुल पिस-कुट जाएँ। विराटा से
सबदल और कुंजरसिंह हम लोगों को संतप्त करेंगे, उधर से देवीसिंह हमें भून
डालेंगे, रामनगर के रावसाहब अपनी सेना लेकर उस पार जंगलों में चले गए हैं।
यदि उन्होंने विराटा पर आक्रमण न किया, तो हम लोग ऐसे गए, जैसे पिंजड़े में
बंद चिड़ियों को बिल्ली मरोड़ देती है।'
'बेतवा-किनारे के किलेदारों को,' अलीमर्दान ने कहा, 'मैं खूब जानता हूँ। ऐसे बदमाश और दगाबाज हैं कि कुछ ठिकाना नहीं। कई बार सोचा, मगर मौका नहीं मिला। अब की बार मौका मिलते ही पहले इन वनबिलावों को मटियामेट करूंगा।'
कुछ उत्साहित होकर रामदयाल बोला, 'वह मौका हुजूर न जाने कब आने देंगे। सरकार
सोचें, कैसी विकट समस्या हम सब लोगों के लिए है। हमें मिटाने के बाद निश्चय
ही देवीसिंह आपको छेड़ेगा। फिर क्यों उसे इस समय छोड़ा जाए?'
अलीमर्दान ने सोचकर कहा, 'विराटा में है कुंजरसिंह?' 'हाँ, सरकार।' रामदयाल
ने उत्तर दिया, और कमर कसकर हुजूर से लड़ने के लिए तैयार है। सबदलसिंह बागी
हो गया। लड़ेगा। उसने देवीसिंह को इस ओर आपसे और रानी साहब से लड़ने के लिए
बुलाया है। उसी के साथ कुंजरसिंह हो गया है।'
स्वप्न-सा देखते हुए अलीमर्दान ने कहा, 'बागी तो कुल बेतवा का किनारा ही है,
अकेला सबदल क्या। पर अब की बार उसके किले को जमीन में मिला देना है।'
फिर मुसकराकर बोला, 'केवल तुम्हारे मंदिर को छोड़ दूंगा। तुम जानते हो कि
मंदिरों से मुझे दुश्मनी नहीं है।'
जिस बात के कहने के लिए रामदयाल उकता-सारहा था, अवसर मिलने पर प्रकट किया,
'मंदिरों को तो हुजूर ने कभी छुआ नहीं है। उसी मंदिर में पालरवाली वह
दाँगी की जवान लड़की भी है। वह पद्मिनी जाति की स्त्री है।'
नवाब ने अधिक मुसकराहट के साथ पूछा, 'अभी तक वहाँ से भागी नहीं? मैं समझता
था, चली गई होगी। बड़ी दिक्कत तो यह है कि बहुत से हिंदू उसे देवी का अवतार
मानते हैं।'
रामदयाल बोला, 'तब हुजूर को पूरी बात का पता नहीं है। वह मंदिर में इस समय तो
है, परंतु कुछ ठीक नहीं, कब कुंजरसिंह के साथ भाग जाए।'
नवाब जरा चौंका। कहने लगा, क्या यह बात है? रामदयाल, तुम सच कह रहे हो? यदि
बात सच है, तो क्या हिंदुओं का यह सिर्फ ढकोसला ही है?'
रामदयाल ने जवाब दिया, 'बिलकुल। मैंने अपनी आँखों से उन लोगों को देखा है और
कान से उनका प्रेम-संभाषण सुना है।'
अलीमर्दान थोड़ी देर तक कुछ सोचता रहा। रामदयाल से पूछा, 'कुंजरसिंह का
देवीसिंह के साथ मेल हो गया है?'
उसने उत्तर दिया, 'मेल तो मैंने नहीं सुना और न होने की कोई संभावना है।
कुंजरसिंह को तब तक और विराटा की गढ़ी में रहा समझिए, जब तक कुमुद उसके साथ
नहीं भागी है। पीछे फिर चाहे देवीसिंह से या किसी से लड़े या न लड़े।'
थोड़ी देर के लिए अलीमर्दान फिर सोच-विचार में पड़ गया। कुछ देर में बोला,
'तुम्हारी यह इच्छा है कि मैं विराटा की तरफ तुरंत कूच करूं?' हाथ जोड़कर
रामदयाल ने उत्तर दिया, 'हुजूर, मेरी क्या, आपकी राखीबंद बहिन रानी साहब की
भी यही प्रार्थना है।'
अलीमर्दान ने बड़ी चेतनता के साथ कहा, 'अभी तैयारी होती है। तुम चलो। आता हूँ। कुंजरसिंह को भी सजा देनी है और उस अहमक सबदल को भी सबक सिखलाना है। दो-तीन दिन में ही यह सब काम निबट जाएगा। मैं पहले विराटा को देखुंगा।'
रामदयाल चलने लगा।
चलते-चलते उससे अलीमर्दान बोला, 'मेरे आने तक इतना प्रबंध जरूर हो जाए जिसमें
विराटा का कोई भी व्यक्ति बाहर न निकल जाने पावे।' __रामदयाल ने चालाकी से,
आँख का कोना बारीकी के साथ दबाकर कहा, 'हो गया है। यदि कोई कसर होगी, तो मिटा
दी जाएगी। आप बिलकुल विश्वास रखें।'
अलीमर्दान हँसकर बोला, 'इनाम पाओगे-ऐसा कि तुमने स्वप्न में भी कल्पना न की
होगी।'
रामदयाल प्रणाम करके चलने लगा।
नवाब ने कहा, 'पहले हम रामनगर नहीं आएंगे। जब तक हम न आ जाएँ, मुकाबला करते
रहना।'
अलीमर्दान ने अपने सब सरदारों को इकट्ठा करके संपूर्ण सेना को जल्दी-से-जल्दी
तैयार किया। भांडेर में थोड़ी-सी सेना छोड़कर बाकी सेना लेकर वह पहर रात गए
चल पड़ा। सालौन भरौली में,जो भांडेर के करीब चार-पाँच मील पर है, सेना को
थोड़ा-सा विश्राम करने के लिए रोक लिया। प्रातःकाल होने के पहले विराटा पर
आक्रमण करने
का निश्चय कर लिया गया था।
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