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विराटा की पद्मिनी

वृंदावनलाल वर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7101
आईएसबीएन :81-7315-016-8

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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...


: ७३ :


राजा देवीसिंह ने तीन ओर से अलीमर्दान के ऊपर आक्रमण करने का निश्चय किया। सिंहगढ़ से लोचनसिंह, दलीपनगर से पालर होते हुए स्वयं, और बड़गाँव से जनार्दन शर्मा दस्ते ले चलें, इस योजना पर कार्य करना निर्धारित हुआ। यह निश्चय किया गया था कि लोचनसिंह नवाब को भांडेर में कुछ समय तक अटकाए रखे, तब तक राजा पालर से आकर रानियों को परास्त कर देंगे और भांडेर पहुँचकर लोचनसिंह की सहायता करके नवाब का अड्डा समाप्त कर देंगे तथा जनार्दन का दस्ता जरूरत पड़ने पर कमक पहुँचाने के लिए बड़गाँव से भांडेर की ओर राजा के पीछे-पीछे बढ़ेगा।
रामनगर में रानियों को पालरवाली सेना के आने की सूचना मिली। उनके पास भी कुछ सरदार और सैनिक इकट्ठे हो गए थे। रामनगर गढ़ हाथ में था, परंतु पड़ोस में विराटा का कटक भी था। रामनगर के रावपतराखन को विराटा के सबदलसिंह के प्रति सृहद भाव बनाए रखने के लिए विशेष कारण न था। इस समय यह काफी तौर पर प्रकट हो गया था कि सबदलसिंह ने नवाब के मुकाबले के लिए राजा देवीसिंह को निमंत्रित किया है। पतराखन को मालूम था कि रानियों के पक्ष में नवाब है, परंतु नवाब ने विराटा पर चढ़ाई करने का अभी तक कोई लक्षण नहीं दिखलाया था। रामनगर में रानियों और पतराखन की स्थिति तभी तक सुरक्षित समझी जा सकती थी, जब तक विराटा और पालर की ओर से आई हुई सेनाओं का सहयोग नहीं हुआ था। पतराखन को अपनी गढ़ी पर इतना मोह न था, जितना उसमें रखी हुई संचित संपत्ति और गाढ़े समय में काम आनेवाले अपने थोड़े से, परंतु निर्भीक योद्धाओं का। समस्या जरा कराल रूप में सामने खड़ी देखकर उसने रामदयाल को बुलाया। वह उसी दिन विराटा से लौटकर आया था। उसने रानियों से सलाह करने के लिए मिलने की इच्छा प्रकट की। रामदयाल उसे रनिवास में ले गया। परदे में होकर रानियों से प्रत्यक्ष बातचीत होने लगी। किसी बीचवाले की जरूरत नहीं पड़ी।

छोटी रानी ने कहा, 'परदे से काम नहीं चल सकता रावसाहब। अटक पड़ने पर तो मुझे तलवार हाथ में लेकर रणक्षेत्र में जाना पड़ेगा।'

पतराखन के जी में लड़ने के लिए बहुत उत्साह न था, तो भी तेजी दिखलाते हुए उसने कहा, 'ठीक है महाराज! और वह दिन शीघ्र आनेवाला है। देवीसिंह अपनी सेना लेकर आ रहे हैं। बहुत संभव है, कल तक हम लोग यहीं घिर जाएँ या विराटा की गढ़ी से तोप हमारे ऊपर गोले उगलने लगें।'
छोटी रानी ने कहा, 'तब हमें तुरंत अपनी सेना पहले से ही भेजकर कहीं पालर के पास ही लड़ाई करनी चाहिए और जैसे बने, विराटा की गढ़ी अपने हाथ में कर लेनी चाहिए।'

पतराखन बोला, 'मुझे दोनों प्रस्ताव पसंद हैं, परंतु आदमी मेरे पास इतने नहीं कि इन प्रस्तावों में से एक को भी सफलतापूर्वक कार्य में परिणित कर सकूँ। बिना नवाब की सहायता के कुछ न होगा। मालूम नहीं, उन्होंने अभी तक विराटा को क्यों अपने अधिकार में नहीं लिया।'
बड़ी रानी ने कहा, 'विराटा को हमें स्वयं अपने अभियान में कर लेना चाहिए, नहीं तो नवाब कदाचित् वहाँ के मंदिर को तुड़वा डालेगा।
छोटी रानी ने कहा, 'यह असंभव है।' पतराखन ने कहा, 'असंभव तो कुछ भी नहीं है, परंतु वह ऐसा करेगा नहीं। सबदल ने उनके साथ जैसा बरताव किया है, उससे यह प्रकट होता है कि नवाब मंदिर को छोड़कर गाँव-भर को तो अवश्य ही तहस-नहस कर देगा।'
 
रामदयाल बोला, 'गाँव को खाक करने से क्या मतलब? नवाब तो उस दाँगी की छोकरी का डोला चाहते हैं, जिसे माँ ने अवतार मान रखा है।'
बड़ी रानी ने पूछा, 'कौन को?' रामदयाल ने उत्तर दिया, 'मैं स्वयं उसे देख आया हूँ। वह नित्य देवी से कुंजरसिंह की सफलता के लिए प्रार्थना किया करती है और कुंजरसिंह नित्य यह सोचा करते हैं कि अन्नदाता और देवीसिंह को परास्त करके दलीपनगर के राजसिंहासन पर बैठ जाऊँ और कुमुद को अपनी रानी बना लूँ। महाराज, अपनी आँखों सब हाल देख आया हूँ। मैंने अपने को वहाँ राजा देवीसिंह का नौकर प्रसिद्ध कर रखा है।' _ 'राजा देवीसिंह!' छोटी रानी ने अत्यंत घृणा के साथ कहा, 'चाहे कुछ हो जाए, देवीसिंह राजा न रहने पावेगा।' __ पतराखन अधैर्य के साथ बोला, 'जो कुछ करना हो, जल्दी करिए। मेरी राय है कि रामदयाल को नवाब के जताने के लिए तुरंत भेजिए, अपने सरदारों और सैनिकों को दो भागों में बाँटकर एक को देवीसिंह से लड़ने के लिए पहुँचाइए और दूसरे को विराटा के ऊपर धावा करने के लिए भेजिए। एक ओर से आपकी टुकड़ी विराटा पर धावा करे
और दूसरी ओर से मेरी टुकड़ी। मैं उस पार जाकर उधर से धावा करूँगा और विराटावालों को निकल भागने का अवसर न दूंगा।'

रामनगर की गढ़ी से विराटा की गढ़ी स्पष्ट दिखलाई पड़ रही थी, करीब एक कोस की दूरी पर पानी में खड़े हुए एक स्तंभ-सदृश प्रतीत होती थी।
बड़ी रानी ने कहा, 'विराटा की उस कन्या का क्या होगा? क्या उसे मुसलमानों द्वारा मर्दित होते हुए देखा जाएगा?'
रामदयाल ने तुरंत उत्तर दिया, 'उसी लोभ के वश असल में नवाब हमारा साथ देने को यहाँ आवेगा। दलीपनगर का एक-चौथाई राज्य भी उसे चाहिए, परंतु उस लड़की के बिना वह तीन-चौथाई हिस्से पर भी लड़ने को इन दिनों राजी न होगा। फिर भी मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने ऐसा प्रबंध किया है कि उस लोभ से नवाब हमारी सहायता
के लिए आवे और यथासंभव उसे पावे नहीं।'
बड़ी रानी ने पूछा, 'यह कैसे होगा?'

उसने उत्तर दिया, 'यह ऐसे कि विराटा में कुंजरसिंह विद्यमान हैं। वह उस लड़की को बिना अपनी रानी बनाए दम नहीं लेंगे, चाहे दलीपनगर का या दलीपनगर की एक हाथ भूमि का भी राज्य मिले या न मिले। विराटा के अधिकृत होने के पहले ही मुझे पूर्ण आशा है वह लड़की कुंजरसिंह के साथ किसी सुरक्षित स्थान में भाग जाएगी। मैं पानी के मार्ग से नाव में होकर विराटा आया-जाया करूँगा और सब समाचार दिया करूँगा अर्थात् जब तक विराटा अपने अधिकार में नहीं आया।'

बड़ी रानी इस बेतुके उत्तर से संतुष्ट नहीं हुई। कुछ पूछना चाहती थीं कि छोटी रानी बीच में पड़ गई। बोलीं, 'ऐसी छोटी-छोटी बातों पर इस समय ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। रामदयाल जो कह रहा है, वह ठीक है। तुरंत नवाब को ससैन्य बलाना चाहिए। रामदयाल, तुम इसी समय घोड़े पर सवार होकर सरपट जाओ। मैं चाहती हूँकि सवेरा होने के पहले ही हमारी और नवाब की सेनाएँ देवीसिंह को कुचलने और विराटा को ढाह देने के काम में नियुक्त हो जाएँ।'

रामदयाल ने स्वीकार किया। पतराखन ने कहा, 'मैं उस पार जाकर अपनी योजना को काम में लाता हूँ।'
रामदयाल भांडेर की ओर गया और पतराखन गढ़ी को अपने सिपाहियों और संपत्ति से खाली करके उस पार सुरक्षित जंगल में चला गया। परंतु तोप वहीं छोड़ गया।

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