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विराटा की पद्मिनी

वृंदावनलाल वर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7101
आईएसबीएन :81-7315-016-8

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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...



:६:

 

गाँव में रात-भर हो-हल्ला होता रहा, परंतु किसी ने किसी पर आक्रमण नहीं किया। सवेरे नहा-धोकर राजा के सामने लोग इकट्ठे हुए।
सैयद आगा हैदर राजा की हालत देखकर सहम गया। धीरे से जनार्दन के कान में कहा, 'महाराज को यहाँ लाने में बड़ी भूल हुई।'

'क्या करते?' जनार्दन ने भी धीरे से कहा, 'उनके हठ के सामने किसी की नहीं चलती। लोचनसिंह सरीखे वीर को कल संध्या समय कत्ल करवाए डालते थे। उसने अपनी वीरता से अपने प्राण बचाए।' इतने में कुंजरसिंह आया। रात-भर के जागरण के कारण आँखें फूली हुई थीं और चेहरे पर थकावट छाई थी। प्रणाम करके राजा के पास जाकर यथानियम बैठ गया। राजा की आँखें चढ़ गईं, परंतु कुछ कहा नहीं। देर तक किसी दरबारी की हिम्मत कोई बात कहने की नहीं पड़ी।

लोचनसिंह बहुत समय तक कभी चुप नहीं रहा था। बोला, 'किसी ने हल्ला-बल्ला नहीं किया। जानते थे कि अभी तो एक ही आदमी की लाश ढोनी पड़ी है, आगे न मालूम कितनी लाशें ढोनी पड़ेंगी।'

कुंजरसिंह ने पूछा, 'लाश को वे लोग कब उठा ले गए थे?' हम लोगों के वहाँ से चले आने के थोड़ी ही देर पीछे।' लोचनसिंह ने उत्तर दिया। राजा ने रुखाई के साथ कहा, 'हमको यह सब चबर-चबर पंसद नहीं है।' फिर सन्नाटा छा गया, इतना कि दूर से आनेवाली रमतूलों और ढोल-ताशों की आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ने लगी।
जनार्दन ने धीरे से राजवैद्य से कहा, 'हकीमजी, कालपी की फौज छापा मारनेवाली है।'

'यह मुसलमानों के लिए मूर्खता की बात होगी, यदि उन्होंने कुछ आदमियों के अपराध के लिए गाँव-भर को सताया, या अपने राज्य की सेना पर धावा किया। रमतूलों और ढोल-ताशों की जो आवाज आ रही है, वे किसी की बारात के बाजे हैं।'
जनार्दन ने धीरे से मंतव्य प्रकट किया, 'न-मालूम किस बुरी सायत में यहाँ आए थे।' 'सारा कुसूर लोचनसिंह का है।' ।
आगा हैदर ने अपने आस-पास कनखियों से देखते हुए सतर्कता के साथ कहा, 'पंडितजी, यह ठाकर एक दिन अपने राज्य को किसी गहरे खंदक में खपा देगा।'
जब इस तरह से किसी बड़ी जगह के सन्नाटे में दो आदमी कानाफूसी करते हैं, तब टोलियाँ-सी बनकर अन्य उपस्थित लोग भी कानाफसी करने लगते हैं।
स्थान-स्थान पर कानाफूसी होती देख राजा उस सन्नाटे को अधिक समय तक न सह सके। बोले, 'लोचनसिंह!'
'महाराज!' उसने उत्तर दिया। 'तुम्हारे घराने में चामुंडराय की उपाधि चली आई है, जानते हो?' 'हाँ महाराज, सारा संसार जानता है कि सिर-पर-सिर काटने के बाद यह उपाधि हम लोगों को मिली है।'

'वह तुमको प्यारी है?' 'हो महाराज, प्राणों से भी अधिक और कदाचित् इस संसार के संपूर्ण जीवों से अधिक।'
'यानी महाराज।' 'हाँ महाराज।' 'निर्लज्ज मूर्ख।' 'सो नहीं महाराज! चामुंडराय की जो प्रतिष्ठा है वह हृदय का खून बहाकर प्राप्त की गई है। किसी भी लोभ के वश में वह दलित नहीं हो सकती। बस यही तात्पर्य था, और कुछ नहीं।'
'लोचनसिंह, तुमने रात को कहाँ पहरा लगाया था?' 'राजमहल पर।' 'झूठ बोलते हो। उस लड़की के यहाँ, जो देवी कहलाती है, रखवाली करने पर तुम भी तो थे?'
'मैं न-था महाराज।' 'काकाजू, वहाँ पर मैं अकेला ही था।' बहुत विनीत, परंतु दृढ़ भाव के साथ कुंजरसिंह बोला।
'हाँ, तुम अब बहुत मनचले हो गए हो।' राजा ने उपस्थित लोगों की परवाह न करते हुए कहा, 'तुम्हारे ये सब लक्षण मुझे बहुत अखरने लगे हैं। तुम क्या यह समझते हो कि ऐसी बेहूदा हरकतों से मैं प्रसन्न बना रहूँगा?'

कुंजरसिंह स्थिर दृष्टि से एक ओर देखता रहा। उत्तर में कुछ नहीं बोला।
राजा लोचनसिंह की ओर एकटक दृष्टि से देखने लगे। लोचन ने नेत्र नीचे नहीं किए।
'आज तुम्हारी चामुंडराई की परीक्षा है लोचनसिंह।' राजा ने कुछ क्षण पश्चात् कहा।

'आज्ञा हो महाराज।' लोचनसिंह बोला।

'यह मुसलमानी फौज हमको और हमारे धर्म को नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए आई है।' राजा ने कहा, 'उन लोगों की आँख मंदिर की मूर्ति तोड़ने और मूर्ति की पुजारिन-उस दाँगी की लड़की-को उड़ा ले जाने पर है। मेरी आज्ञा है, उस सेना का मुकाबला करो और लड़की को सुरक्षित दलीपनगर पहुँचा दो।'

कुंजरसिंह काँप उठा। जनार्दन को रोमांच हो आया और लोचनसिंह की नाहीं पर सबकी आशा जा अटकी।

लोचनसिंह ने हाथ बाँधकर उत्तर दिया, 'उस सेना का सामना करने के लिए मैं अभी तैयारी कराता हूँ, अपने पास इस युद्ध के लिए काफी सैनिक नहीं हैं। दलीपनगर से और सेना बुलाने का प्रबंध कर दीजिए। दूसरी आज्ञा जो दाँगी की लड़की को दलीपनगर पहुँचाने से संबंध रखती है, उसका पालन उस लड़की की इच्छा पर निर्भर है। यदि वह दलीपनगर न जाना चाहेगी तो मैं उसे पकड़कर न भेजूंगा।'

लोचनसिंह चला गया।
उसी समय ढोल, ताशों, रमतूलों का शब्द फिर सुनाई पड़ा। आगा हैदर ने कहा, 'सवारी दलीपनगर वापस चली जाए तो बहुत अच्छा। वहाँ शांति के साथ दवा-दारू होगी।'
'तुम सब गधे हो।' राजा जरा कष्ट के साथ बोले, 'यह आवाज क्या है, इसका पता तुरंत लगाओ, नहीं तो मार खाओगे। याद रखना, मैं लडूंगा और किसी को नहीं छोडूंगा।'

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