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विराटा की पद्मिनी

वृंदावनलाल वर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7101
आईएसबीएन :81-7315-016-8

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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...

:३०:
आनंदोत्सववाली उसी संध्या के बाद रामदयाल ने अलीमर्दान से बात करने का अवसर निकाला। वह भी रामदयाल की टोह में था।
परंतु अनुकूल अवसर न होने से उसने बातचीत आरंभ नहीं की, वार्तालाप के सिलसिले को भारी-भर कर दिया।
'गद्दी मिलने के बाद राजा साहब दीवान किसको बनाएंगे रामदयाल?' अलीमर्दान ने पूछा।
'हुजूर या वह जिसे उस पद पर बिठलाएँ।' रामदयाल ने उत्तर दिया।


'मैं तो उन्हें गद्दी पर बिठलाकर कालपी चला जाऊँगा। वहीं के मामलों से फुरसत नहीं। न मालूम दिल्ली जाना पड़े, न मालूम मालवे की तरफ।'

'तबजिसे वह चाहेंगे; परंतु राज्य, इस तिलक के बाद भी बिना आपकी सहायता के किस तरह चलेगा सो जरा मुश्किल से समझ में आता है। यदि महारानी के हाथ में शासन की बागडोर रहने दी जाएगी, तो निस्संदेह कठिनाइयाँ कम नजर आयेंगी।'
अलीमर्दान हँसकर बोला, 'यदि रामदयाल को दीवान बना दिया जाएगा तो शायद ज्यादा गड़बड़ न हो।' फिर तुरंत गंभीर होकर कहने लगा, 'तुम क्या इसे असंभव समझते हो? दिल्ली की सल्तनत में छोटे-छोटे आदमी बहुत बड़े-बड़े हो गए हैं। दिमाग और होशियारी की कद्रदानी की जाती है, रामदयाल!'
रामदयाल चुप रहा।
अलीमर्दान ने कहा, 'तुम्हें अगर दीवान मुकर्रर किया, तो महारानी साहिबा को तो कोई एतराज न होगा?'
उसने उत्तर दिया, 'उनके चरणों की कृपा से तो मैं जीता ही हूँ।' कुछ और कहना चाहता था, झिझक गया।
अलीमर्दान ने कहा, 'राजा साहब तो बेचारे बड़े नेक और सीधे आदमी मालूम होते हैं।

रामदयाल ने कोई मंतव्य प्रकट नहीं किया।

'हमारा कुछ काम रामदयाल?' उसने पूछा।

रामदयाल बोला, 'आज्ञा?' 'मैंने तुमसे पालर में कुछ कहा था?'

'याद है।'

- 'इस बीच में तुम बहुत उलझनों में रहे हो। अगर अब पता लगा सको, तो अच्छा है, नहीं तो खैर।'

'लगा लिया। रामदयाल ने कहा। उत्सुकता के साथ अलीमर्दान ने पूछा, 'कहाँ है?' 'खबर लगी है कि वह विराटा के जंगलों में किसी गुप्त किले की अदृश्य गुफा में है।' रामदयाल ने उत्तर दिया।


अलीमर्दान हँसकर बोला, 'यह पता तो तुमने ऐसा बतलाया कि शायद तुम जाकर भूल जाओ।'

उसने कहा, 'जब इतना पता लग गया, तो शेष भी लग जाएगा।' अलीमर्दान अपनी सहज सावधानी के वृत्त को उल्लंघन करके बोला, 'रामदयाल, बड़ा पुरस्कार मिलेगा।'


'हुजूर, मैं उसे ढूँढूँगा और आपके सम्मुख कर दूंगा। इसका बीड़ा उठाता हूँ।'

'और अगर रामदयाल, तुमने इस काम में मेरी मदद की, तो इस राज्य की दीवानी तो तुम्हें मिलेगी ही, मैं अपने पास से भी बहुत बढ़िया इनाम दूंगा।'

रामदयाल ने नम्रतापूर्वक कहा, 'मुझे तो आप लोगों की कृपा चाहिए और क्या करना है।'
जरा दबी जबान से अलीमर्दान ने पूछा, 'तुम उसे देवी का अवतार तो नहीं समझते? वह देवी का अवतार नहीं हो सकती-'
'जरा भी नहीं।' रामदयाल ने उत्तर दिया, 'यह तो मूों का ढकोसला है।' 'उसका नाम क्या है?' 'कुमुद।'

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