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विराटा की पद्मिनी

वृंदावनलाल वर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7101
आईएसबीएन :81-7315-016-8

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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...

: २९ :
कड़ी लड़ाई के बाद सिपाही जब अवकाश पाकर आनंद मनाते हैं, तब उनका वेग पाठशाला से छूटे हुए छोटे-छोटे विद्यार्थियों के हुल्लड़ से कहीं अधिक बढ़ जाता है। इस शोर-गुल को एक ओर छोड़कर अलीमर्दान, कुंजरसिंह और रामदयाल एकांत स्थान में जा बैठे।


उमंग के साथ अलीमर्दान ने कहा, 'जिस दिन राजा साहब का तिलक होगा, उस दिन जश्न और भी जोर-शोर के साथ मनाया जाएगा। आज तो बेचारे थके-माँदे सिपाही केवल थकावट दूर कर रहे हैं।'

'बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ सामने हैं।' कुंजरसिंह ने गंभीरता के साथ कहा, 'मैंने तो समझा था कि सिंहगढ़ के भीतर ही रणक्षेत्र और श्मशान दोनों हैं।'
रामदयाल बोला, 'अब उतनी कठिनाइयाँ हमारे सामने नहीं हैं, जितनी देवीसिंह इत्यादि के सामने हैं। राजा, ऐसी मनगिरी बातें न करनी चाहिए।'
'आप राजा साहब, अलीमर्दान स्वाभाविक गति के साथ बोला, 'राज्य प्राप्त करते ही रामदयाल को बड़ा सरदार बनाइएगा। मैं इनके लिए सिफारिश करता हूँ, निवेदन करता हूँ।'


उसके स्वर में अनुरोध की विशेष मात्रा कल्पित करके कुंजर को रामदयाल की कुछ उन सेवाओं का स्मरण हो आया, जिनका संबंध मृत राजा नायकसिंह के साथ था। ___ 'परंतु!' भाव को छिपाकर बोला, 'शुभ घड़ी आने पर किसी सेवक की कोई सेवा नहीं भुलाई जा सकती नवाब साहब। यथोचित् पुरस्कार सभी को मिलेगा।'

रामदयाल के मन में इस वचन से किसी उमंग का संचार न हुआ। बोला, 'महारानी साहब और राजा की कृपा बनी रहे नवाब साहब हमारे ऊपर। हमें तो चरणों में पड़े रहने में ही सुख है, सरदारी लेकर क्या करेंगे?'

अलीमर्दान की समझ में न आया। अधिक रोचक विषय की ओर मनोवृत्ति को फेरने के प्रयोजन से बोला, 'भविष्य में आपकी क्या कार्यविधि होगीराजा साहब? अभी तक तो मैंने सैन्य-संचालन किया है, अब सेनापतित्व का भार आपको लेना होगा।'

- इसके उत्तर के लिए कुंजरसिंह तैयार था। बोला, 'मेरी गति-मति के ऊपर रानी साहिबा को अधिकार है। उनकी इच्छा मालूम करके आपसे प्रार्थना करूंगा।'


'बहुत अच्छा।' अलीमर्दान ने कहा, 'सवेरे तक बतला दीजिएगा। परंतु एक सम्मति है, उसे ध्यानपूर्वक सुन लीजिए और रानी साहिबा से अर्ज कर दीजिए। वह यह है कि सवेरे तुरंत कुछ फौज दलीपनगर पर हमला करने के लिए रवाना करवा दी जाए और एक टुकड़ी पास-पड़ोस के छोटे-मोटे किलों पर कब्जा करने के लिए भिन्न-भिन्न दिशाओं में भिजवा दी जाए।'


कुंजरसिंह बोला, 'सेना को इस तरह कई भागों में विभक्त कर देना ठीक रणनीति होगी या नहीं, कक्कोजू से पूछकर बड़े भोर निवेदन करूँगा?'

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