ऐतिहासिक >> विराटा की पद्मिनी विराटा की पद्मिनीवृंदावनलाल वर्मा
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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...
अपनी सेना का एक दस्ता पालर में छोड़कर दूसरे दिन उसने कूच कर दिया। जब दलीपनगर के राज्य में कई कोस घुस गया, तबरामदयाल को विदा करते समय बोला, 'रानी के पास कुछ सरदार हैं?' ।
'हैं सरदार।' उसने उत्तर दिया। 'उन सबको लेकर सिंहगढ़ पहुँचो। अब रानी का दलीपनगर में रहना ठीक नहीं।' 'बहुत अच्छा। मैं अभी जाकर इसका प्रबंध करता हूँ।' कुछ समय उसे रोककर अलीमर्दान ने कहा, 'मंदिर के विषय में तुम्हारा क्या ख्याल है कि मैं तुड़वा दूंगा।''कभी नहीं।' रामदयाल ने आवेश में आकर उत्तर दिया। .
जरा ठहरकर अलीमर्दान ने कहा, 'मगर जिस लड़की ने यह फसाद करवाया था, उसे कुछ सजा दी जाएगी।' रामदयाल चुप रहा।
अलीमर्दान बोला, 'रामदयाल, हम तुम्हारे देवताओं की इज्जत करते हैं, मगर उन आदमियों की नहीं, जो देवता बनकर दुनिया को शरारत से न सिर्फ ठगते हैं, बल्कि बेकसूर सिपाहियों को मरवा डालते हैं।'
'यह दुरुस्त है हुजूर।' रामदयाल ने कहा। अलीमर्दान हँसकर बोला, 'मगर उस लड़की को जो सजा दी जाएगी, वह किसी बड़े पुरस्कार से भी बढ़कर होगी।'
रामदयाल अलीमर्दान का मुँह जोहने लगा।अलीमर्दान कहता गया, उसे मैं अपने महल में जगह दूँगा। पालर की अपेक्षाशायद कालपी उसे शुरू-शुरू में कम पसंद आवे, बस, इतने में ही सजा समझो। इसके बाद अगर वह सुखी न रह सकी, तो तुम मुझे दोष देना। क्या कहते हो रामदयाल?'
उसने उत्तर दिया, 'इसमें तो किसी प्रकार का हर्ज नहीं दिखलाई पड़ता हुजूर।' . अलीमर्दान ने आँख गड़ाकर पूछा, 'उस लड़की का पता बतला सकोगे?' रामदयाल ने विश्वास दिलाकर कहा, 'खोजकर बतलाऊँगा।'
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