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ऐतिहासिक >> विराटा की पद्मिनी

विराटा की पद्मिनी

वृंदावनलाल वर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7101
आईएसबीएन :81-7315-016-8

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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...


:२६ :

अलीमर्दान दलीपनगर राज्य में थोड़ा ही घुस पाया था कि उसे राज्य की सेना का सामना करना पड़ा।


राजा देवीसिंह और लोचनसिंह के नायकत्व में दलीपनगर की सेना को अलीमर्दान नुकसान नहीं पहुंचा पाया। दलीपनगर की ओर उसकी बढ़ती हुई प्रगति को निश्चित रूप से रुक जाना पड़ा। लगभग हर समय नालों, जंगलों और पहाड़ियों में लड़ते-लड़ते अलीमर्दान ने सोचा, बिना किसी अच्छे किले को हाथ में किए युद्ध आसानी से और विजय की पूरी आशा के साथ न हो सकेगा। इसलिए उसने देवीसिंह की सेना को अटकाए रखने के लिए एक दस्ता जंगल में छोड़ दिया और उसी सेना के दूसरे दस्ते को लेकर होशियारी के साथ चुपचाप सिंहगढ़ रवाना हो गया। बहुत चक्करदार मार्ग से जाना पड़ा, इसलिए वह सिंहगढ़ के निकट देर में पहुँचा।


राजा देवीसिंह को इस चाल की सूचना विलंब से मिली। उस समय पालर की छावनी से अलीमर्दान की इस नई योजना के अनुसार और सिपाही आ पहुँचे। देवीसिंह इस सेना का मुकाबला और पालर की छावनी पर धावा करने के लिए वहीं गया और लोचनसिंह को सिंहगढ़ की ओर भेजा। । परंतु इसके पहले ही रामदयाल ने छोटी रानी के पास पहुँचकर राजधानी में ही उपद्रव जाग्रत कर दिया। जो लोग राजा देवीसिंह के अभिषेक से असंतुष्ट थे वे सब छोटी रानी के झंडे के नीचे आ गए और उन्होंने खास दलीपनगर में गृहयुद्ध आरंभ कर दिया। छोटी रानी ने एक सरदार के नीचे थोड़ी-सी सेना राजधानी को तंग करने के लिए छोड़ दी और एक बड़ी तादाद में लेकर सिंहगढ़ की ओर चल पड़ी। उसे यह नहीं मालूम था कि अलीमर्दान सिंहगढ़ की ओर गया है। मालूम भी हो जाता, तो वह न रुकती। - जनार्दन ने इस विद्रोह का समाचार राजा के पास, जहाँ वह लड़ रहा था, भेजा। पत्रवाहक लोचनसिंह को बीच ही में मिल गया। तब लोचनसिंह सिंहगढ़ की ओर न जाकर सीधा दलीपनगर पहुँचा। राजधानी के बलवे को दबाने के लिए लोचनसिंह को कई दिन लग गए।

इस बीच में रानी और अलीमर्दान की सेनाएँ सिंहगढ़ के मुहासिरे पर पहुँच गईं। तब वहाँ राजा देवीसिंह की सेना को कुंजरसिंह, अलीमर्दान और छोटी रानी की सेनाओं से लोहा लेना पड़ा। परंतु फल के निर्णय में अधिक विलंब नहीं हुआ।

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