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विराटा की पद्मिनी

वृंदावनलाल वर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7101
आईएसबीएन :81-7315-016-8

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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...

:२२:
कुछ दिन पीछे विराटा में भी खबर पहुँची कि कालपी के सूबेदार अलीमर्दान की सेना पालर में पहुँच गई है। मंदिर तोड़कर नष्ट कर दिया है और कुमुद को लक्ष्य करके दलीपनगर पर आक्रमण करनेवाली है। यह समाचार वहाँ पहले ही पहुंच गया था कि दलीपनगर का राज्य किसी एक अप्रसिद्ध, दरिद्र ठाकुर देवीसिंह को मिल गया है। किस तरह मिला, यह बात भी नाना रूप धारण करके वहाँ पहुँची थी।

विराटा छोटा-सा राज्य था, परंतु वहाँ का राजा सबदलसिंह सावधान और दिलेर आदमी था। मालूम था कि इस लड़ाई का कारण मंदिर की मूर्ति और कदाचित् कुमुद है। उसे वह सुरक्षित रखे हुए था। जब उसके पड़ोस में होकर अलीमर्दान की सेना निकली, तब उसने कोई रोकटोक नहीं की, बल्कि खातिर से पेश आया, जिससे अलीमर्दान को कोई संदेह न हो।
कुमुद की पूजा बाहर से बिलकुल रुक गई। यदि कभी-कभी लुके-छिपे भी हो जाती थी तो बड़ी सावधानी के साथ। परंतु विराटावालों की पूजा बढ़ गई। विराटा-निवासी किसी आनेवाली विपद के निवारण के लिए भक्ति के साथ उस पूजा में रत रहने लगे।

इधर-उधर के समाचार कुमुद को दिन में बहुत कम मिलते थे। रात को नरपतिसिंह से जो कुछ मालूम होता था, उसमें सांसारिक समाचारों का समावेश बहुत कम रहता था। आध्यात्मिक-अर्थात् पूजा-संबंधी विषय उनके भोजन और निद्रा के बीच का स्वल्प समय ले लेते थे।


उस दिन जो कुछ गोमती ने सुना, उससे उसकी विचित्र दशा हो गई। वह कभी आकाश की ओर देखती, कभी गजगामिनी गूढ़ धार की ओर और कभी दूसरे किनारे के निर्जन, सघन वन की ओर देख-देखकर कुमुद से कुछ कहना चाहती थी। पूजा और पुजारियों की भीड़ के मारे दिन में अवसर न मिला। दोनों रात गए अपनी कोठरी में चली गईं। कुमुद को विश्राम की ओर प्रवृत्त होते देखकर गोमती ने कहा, 'क्या नींद आ रही है?
'बड़ी क्लांत हूँ गोमती। आजकल काम के मारे जी बेचैन हो जाता है। मूर्ति से वरदान न मांगकर लोग मेरे सामने हाथ फैलाते हैं।'

'क्योंकि लोग उसे पा जाते हैं।' प्रफुल्ल गोमती बोली।


उदास स्वर में कुमुद ने कहा, 'यह मेरी शक्ति के बाहर है। मैं तो दुर्गा से केवल प्रार्थना करती हूँ, स्वयं किसी को कुछ नहीं दे सकती। जो इससे प्रतिकूल विश्वास करते हैं, वे अपने साथ अन्याय और मेरे साथ क्रूरता करते हैं।'
इस पर गोमती जरा सहम गई। कुछ क्षण बाद उसाँस लेकर बोली, 'उधर के समाचार सुने हैं? युग-परिवर्तन-सा हुआ है।'
'क्या हुआ है गोमती?' कुमुद ने जरा रुचि दिखलाते हुए पूछा। 'दलीपनगर के राजा नायकसिंह का देहांत हो गया है।' उत्तर मिला।
'अब राजा कौन हुआ है? युवराज को गद्दी मिली होगी।' उठती हुई उत्सुकता को स्वयं शांत करके कुमुद ने पूछा।
'सो नहीं हुआ।' संयत आवेश के साथ गोमती बोली, 'राजकुमार को नहीं, दूसरों को राजा राज्य देकर मरे हैं।'

बड़े कुतूहल के साथ कुमुद ने प्रश्न किया, 'किसको गोमती? किसको?' गोमती कुछ कहना चाहती थी, न कह सकी। कुमुद ने उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना कहा, राजकुमार ने ऐसा क्या किया होगा? उन्हें राजाने क्यों राज्य नहीं दिया? वह तो राज्य के उपयुक्त मालूम होते थे। और दूसरे को किसको राज्य दे दिया होगा? समाचार भ्रममूलक जान पड़ता है गोमती।'


'देवी का वरदान खाली नहीं जाता।' गोमती ने कहा, 'देवी की पूजा रीती नहीं पड़ती।'
'तुमने जो कुछ सुना हो, मुझे सविस्तार बतलाओ।' कुमुद ने मुक्त उत्सुकता के साथ कहा।
गोमती चुप रही, जैसे किसी ने उसका गला पकड़ लिया हो। थोड़ी देर बाद बोली, 'राजकुमार को मैंने भी देखा है। ऐसी महत्ता, इतनी दया दूसरों में कम देखी जाती है।
राजा उन्हें चाहते भी थे। वह चाहने योग्य हैं भी।'
कुमुद ने आग्रहपूर्वक पूछा, 'तब बतलाती क्यों नहीं गोमती, राजा कौन हुआ?' उसने उत्तर दिया, 'जिसने उस दिन पालर की लड़ाई में राजा के प्राण बचाने के लिए अपने शरीर को लगभग कटवा दिया था।'
कुमुद ने अनसुनी-सी करके कहा, 'राजकुमार का क्या दोष समझा गया? इस कृति का मूल कारण राजा का पागलपन न समझा जाए, तो क्या समझा जाए?'
'पागलपन नहीं था जीजी?' गोमती ने दृढ़ता के साथ कहा।
इस नए संबोधन से कुमुद बहुत संतुष्ट नहीं हुई। परंतु उसी सहज मृदुल स्वर में बोली, 'तो क्या था गोमती?'
'राजकुमार दासी से उत्पन्न हैं, इसलिए उन्हें राज्य नहीं मिला।' गोमती ने स्वाभाविक गति से उत्तर दिया।
'झूठ, झूठ है गोमती।' क्षुब्ध स्वर में कुमुद ने कहा, 'लोचनसिंह सदृश पुरुष झूठ नहीं बोल सकते।'
'वह निष्ठुर क्रूर ठाकुर।' गोमती के मुँह से निकल पड़ा, 'उसने क्या कहा था?'. कुमुद कुछ देर तक चुप रही। उसके स्वर ने कुछ क्षण बाद फिर वही कोमलता धारण कर ली। बोली, 'तुम्हें कैसे मालूम गोमती?'
गोमती ने इसके उत्तर में कुंजरसिंह की उत्पत्ति की कथा सुना दी। लंबी उसाँस लेकर कुमुद ने पूछा, 'कौन राजा हुआ गोमती?'
गोमती ने उत्साह के साथ उत्तर दिया, 'मैंने बतलाया था, जिन्होंने उस दिन राजा के प्राणों की रक्षा की थी।'
कुमुद ने विस्मयपूर्वक कहा, 'तुम्हारे दूल्हा?' गोमती ने कुछ नहीं कहा।

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