लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
हसीना भी औरत है यह तो अब कोई भी कहेगा। हसीना औरत ज़रूर हैं मगर वे मर्दो की प्रतिनिधि हैं। वे कट्टरवाद की संगी हैं। वे धर्मवाद की पक्षधर हैं। पुरुषतन्त्र की समर्थक हैं। हसीना जैसा मर्द, बांग्लादेश में कोई दूसरा नहीं है। हसीना, आज मर्दो जैसी मर्द हैं। औरत ही पुरुषतन्त्र की धारक और वाहक होती है, यह तो मैं जानती हूँ, लेकिन कोई औरत इतने जघन्य तरीके से औरत-विरोधी मर्द हो उठती है यह बात इतने तीखेपन से मैं पहले नहीं जानती थी।
वैसे औरत होते हुए बहुत-सी औरतें, औरत का नुक़सान करती हैं, बिना समझे-बूझे ही करती हैं। लेकिन मेरा मानना है कि हसीना ने जान-बूझकर औरतों का इतना-इतना नुक़सान किया है। वे यह बात बखूबी जानती हैं कि कट्टरवादी, आज अगर सत्ता में आ गये तो सबसे पहले वे लोग औरतों का सर्वनाश करेंगे। वे जानती हैं कि शरीयती कानून की आग, फ़तवों की आग, धार्मिक विधानों की बर्बरता-असभ्यता औरतों को निगल जायेगी। इसके बावजूद उन्होंने ऐसा भयंकर फैसला लिया। बहुत से लोग हसीना के इस फैसले को 'टैक्टिक्स' कहेंगे, लेकिन मैं कहूँगी यह आग से खेलना है। इसका नतीजा कभी भला नहीं हो सकता, होने वाला नहीं।
आज जिधर भी मैं नज़र डालती हूँ, औरतों की चरित्रहीनता ही नज़र आती है। मर्द के सुख के लिए, भोग के लिए, अपने अधिकारों का विसर्जन देना, मर्दो की गुलामी करना, मर्दो की प्रतिनिधि होना, क्या औरत की चरित्रहीनता नहीं है? औरत अन्य किसी भी कारण से इस हद तक चरित्रहीन नहीं हो सकती। हसीना की चरित्रहीनता से कोई औरत शिक्षा न ले। तमाम औरतें एक स्वर में, हसीना जैसी चरित्रहीन को धिक्कार दे सकें। धिक्कार भेजने का साहस और शक्ति तथा ईमानदारी, मेरी दुआ है, सभी औरतें अर्जित करें।
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- इतनी-सी बात मेरी !
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- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
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- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
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- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
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- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं