लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
यहाँ रिश्ते झूठ पर अलग से चिपकाई गयी थिगली पर टिके होते हैं। दिल में प्यार नहीं, असन्तोष और नफ़रत भरा होता है, मगर महज अभ्यास वश, बंगाली पुरुष पूरी ज़िन्दगी उस औरत के साथ गुज़ार देते हैं। उन लोगों को लगता है कि बीवी को प्यार करना और सिर्फ़ बीवी में ही सन्तुष्ट रहना कोई गौरव की बात नहीं है, इससे पौरुष उज्ज्वल नहीं होता। आम लोगों की तो बात ही क्या, असाधारण या खास लोगों ने भी औरत के श्रद्धा की नज़रों से देखना नहीं सीखा। चूंकि लोगों ने यह गण नहीं सीखा इसलिए वे औरत के सम्मान-असम्मान की परवाह भी नहीं करते। कलाकार, साहित्यकार लोगों से मेरी मित्रता भी है, शत्रुता भी है। बाहर से देखो तो ये लोग यह दिखावा करते हैं कि अपनी बीवी के लिए उन लोगों की जान न्योछावर है, लेकिन गहराई से पता करो तो इन लोगों के दिल में एक नहीं, कई-कई औरतों के लिए लालसा रहती है। विश्वस्तता या भरोसा, जो औरत-मर्द के रिश्ते में सबसे ज़्यादा अहम है, पूर्व में, इस भारत में, इस बंगाल में सर्वाधिक गैर-ज़रूरी सर्वाधिक अप्रासंगिक, सर्वाधिक नगण्य विषय है। लेकिन हाँ, यहाँ, एक प्राणी को विश्वसनीय रहना होगा, वह है औरत जात। औरत जात पति का नाम, अपनी ज़ुबान पर नहीं लाएगी, इसकी सख्त मनाही है। औरत जात अपने पति को 'मेरे मालिक' कह कर सम्बोधित करेगी, यह नियम है। औरत जात पति की व्यक्तिगत सम्पत्ति है। पति के पसीने में भीगे रूमाल की तरह, बदबूदार अन्तर्वास की तरह; अन्य पुरुष के व्यवहार-अयोग्य।
चन्द बंगाली पुरुषों के साथ मेरा सेक्स-सम्बन्ध हुआ है। इतने-से में ही मैंने भयानक तजुर्बे अर्जित किये हैं।
अन्यान्य औरतों के तजुर्बों ने भी मेरे अनुभवों को समृद्ध किया है। पश्चिम के पुरुष अपनी संगिनी के शीर्ष-सुख के बारे में बेहद सजग होते हैं। वे लोग अपनी संगिनी को सातवें आसमान तक उड़ा कर ले जाते हैं, पुलक प्रपात में स्नान कराते हुए, उसके बाद सुख के सागर में अपनी नाव छोड़ देते हैं। लेकिन बंगाली पुरुष अपनी संगिनी के बारे में ज़रा भी नहीं सोचते। संगिनी को अपने शरीर की संडसी में फँसाए रख कर, मानो किसी बाघ ने अभी-अभी नरम-मुलायम हिरण का शिकार किया हो, और उसे फटाफट चट कर जाने की हड़बड़ी हो। इस ढंग से पुरुष के मन के किसी कोने में छिपे, बलात्कार का स्वाद लेने की गोपन चाह, अवश-निस्पन्द औरत की देह पर सवार हो कर तृप्त होती है। पूरी ताकत लगा कर, अपनी देह तले कुचल-पीस कर, मानो किसी गावतकिये पर अपने वीर्य-पतन के बाद, पुरुष का करवट बदल कर सो रहने को, दुनिया में किसकी मजाल है जो निन्दा करे? जिस किसी भी सभ्य समाज में कोई भी पति अगर अपनी पत्नी की इच्छा के खिलाफ़ उससे सेक्स सम्बन्ध स्थापित करता है, तो ऐसे सेक्स सम्बन्ध को जो कहा जाता है, अधिकांश बंगाली पुरुष उससे अवगत नहीं हैं-उसे बलात्कार कहते हैं। और बलात्कार की सज़ा पति नामक बलात्कारी को अन्यान्य किसी बलात्कारी की तरह ही सिर झुका कर कबूल करना पड़ती है। अधिकांश बंगाली पुरुष अपने को अबाध सेक्स-सम्पर्क में पारदर्शी समझ कर अपने को सेक्स-विशारद मान लेते हैं, वे लोग औरत के यौनांग के विविध अली-गली की छिटपुट हकीकत बिलकुल जानते ही नहीं, कहाँ स्पर्श करने भर से औरत एकदम से धधक उठती है, कहाँ छूने से वह जलोच्छ्वास में बहने लगती है, यह कौन, कब जानने की कोशिश करता है? रमण के लिए रमणी रक्तिम हुई या नहीं, यह समझने में किसी की दिलचस्पी नहीं होती। पुरुष तो सिर्फ़ अपना सुख, अपना आनन्द समझता है। बंगाली पुरुष अपने को फूहड़ ढंग से प्यार करता है। हालाँकि वह जुबान से बोलता रहता है; कविताई करता रहता है, लेकिन किसी भी औरत को वे लोग प्यार नहीं करते।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं