लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
5. औरत अगर किसी-न-किसी बात के लिए बदनाम न हो तो नहीं चलता।
बदनामी विहीन किसी औरत को देखने का सौभाग्य मुझे आज तक नहीं मिला। वैसे पुरुष भी कम बदनाम नहीं होते हैं। मगर उन बदनामियों को सुनाम कहा जाता है। जैसे, 'वह लड़का ढेरों लड़कियों को नाक में नकेल डाल कर नचा रहा है।,' 'वह लड़का अनगिनत लड़कियों के साथ घूमता है। अपनी बीवी-टीवी की बिलकुल परवाह नहीं करता।,' 'अरे, उसकी नौकरानी को देखा? क्या हेवी फिगर है। वह रोज़ आती है? उसने तो खासा पटा लिया है।', 'अरे भइये, वह तो चढ़ाने में धाकड़ है। सुबह से दारू चढ़ाना शुरू कर देता है! कमाल का लड़का है, रात को भी चढ़ाता ही जाता है अरे गांजा-टांजा, उसके लिए कुछ भी नहीं है।' किसी औरत के बारे में ऐसे मंतव्य की कल्पना की जा सकती है? और इसे नाम देते हैं-सुनाम!
6. मेरे बारे में दो तरह की बदनामी है। पहली बदनामी है-मैं पुरुष विरोधी हूँ। पुरुष मुझे फूटी आँख भी नहीं सुहाते। दूसरी बदनामी है-मैं नारी विरोधी हूँ। किसी भी लड़की या औरत को मैं फूटी आँख भी बर्दाश्त नहीं कर पाती। तीसरी बदनामी के बारे में मुझे अभी आशंका है। वह शायद हिजड़े विरोधी होने के बारे में है। मैं हिजड़ा-विरोधी हूँ। हिजड़ों को मैं बर्दाश्त नहीं कर पाती।
बहरहाल बदनामी के बारे में सिर खपाते-खपाते, मैंने गौर किया है कि आजकल मैंने सुनाम के बारे में भी सिर खपाना छोड़ दिया है। एक तरह से यह शायद अच्छा ही हुआ।
7. भारत के अनगिनत शहरों में लड़कियाँ-औरतें मोटर साइकिल चलाती हुई नज़र आती हैं। लेकिन कलकत्ता में इसका चलन नहीं है। इस शहर में मोटर साइकिल मर्द चलाते हैं। चालकों के सिर पर हेलमेट शोभायमान रहते हैं। चालक के आगे-पीछे अगर पुरुष सवार होते हैं तो उन लोगों के सिर पर भी हेलमेट होते हैं। सिर्फ औरतों के सिर पर ही हेलमेट नहीं होते। चालक के पीछे अपनी दोनों टाँगें समेटे, जान जोखिम में डाले, पीछे बैठी हुई औरत, आराम से खुले सिर, हेलमेट विहीन चली जा रही है। सामने पति-देवता या प्रेमी-देवता यानी सर्वोपरि पुरुष-देवता सुरक्षित और सही-सलामत रहते हैं। अगर कहीं हादसा हो गया तो पति-परमेश्वर बच जायेंगे और सिर पर सिन्दूर-सुहाग लिए बीवी बेचारी स्वर्ग सिधार जायेगी। सच, अपना सिर काट कर, दूसरों की यात्रा शुभ बनाने या अपने जीवन की बलि चढ़ाकर दूसरों के जीवन को सशक्त करने में, औरतों का कहीं कोई मुक़ाबला नहीं है। औरतें वाकई बेजोड़ हैं।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं