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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

बंगाली नारी : कल और आज


अधिकांश बंगाली-हिन्दू, यहाँ तक कि जो लोग कॉलेज-विश्वविद्यालय पास कर चुके हैं, जिन लोगों का राजनीति-अर्थनीति का ज्ञान भी ख़ासा प्रखर है, उन लोगों का खयाल है कि बंगाली कहने से. बंगाली-हिन्द ही समझा जाता है। बंगाली-मुसलमान, बंगाली-ईसाई, बंगाली-बौद्ध, बंगाली-नास्तिक भी 'बंगाली' होते हैं, वे लोग नहीं जानते। बंगाली-हिन्दुओं का यह अज्ञान, दिनोंदिन भयावह रूप धारण करता जा रहा है। इस देश में पूर्वी बंगाल या बांग्लादेश के बंगालियों को 'बांग्लादेशी' बुलाने का ख़ासा प्रचलन है। बांग्लादेशी गाय, बांग्लादेशी क़ानून हो सकता है, लेकिन इन्सान कैसे बांग्लादेशी हो जाता है। बंगाली जाति ने उस समय तो जन्म नहीं लिया था, जब सन् इकहत्तर में बांग्लादेश नामक एक नया देश अस्तित्व में आया। बंगाली अपनी दीर्घ शताब्दियों की भाषा और संस्कृति समेत आज भी बंगाली ही है सिर्फ़ राजनैतिक कारणों से देश का नाम भर बदलता रहा है। यूँ बदलते रहने की जिम्मेदारी जाति क्यों ले? जिन धर्मवादियों ने समृद्ध और सेक्युलर बंगाली-संस्कृति का विनाश करके जबरन इस्लामी-संस्कृति को घुसा कर देश का सर्वनाश करने की कोशिश की थी, उन लोगों ने बंगाली-जातीयतावाद की जगह बांग्लोदशी जातीयतावाद घुसा कर संविधान तक बदल डाला। उन्हीं लोगों ने इसी इरादे से धर्मनिरपेक्षता को विदा करके इस्लाम को राष्ट्रधर्म कर दिया।

बंगाली मुसलमानों की संख्या, बंगाली-हिन्दुओं से ज्यादा है। इसलिए बंगाली-मुसलमानों की संस्कृति ही, अंत में बंगाली-संस्कृति के तौर पर चिन्हित होने की संभावना अधिक है। उल्लेखनीय है कि बंगाली-मुसलमानों की संस्कृति, गैर-बंगाली मुसलमान संस्कृति से बिल्कुल भिन्न है। बंगाली मुसलमानों की भाषा और संस्कृति, ऐतिहासिक कारणों से विभिन्न विदेशी धर्म-संस्कृतियों और भाषाओं के प्रभाव से समृद्ध से समृद्धतर हुई है।

बंगाली औरत, हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम-किसी भी धर्म की अनुयायी हो सकती है, किसी भी धर्म में आस्था या अनास्था रख सकती है। बंगाली औरत बंगाल में किस हाल में है, उन लोगों के दिन-रात कैसे गुज़रते हैं-जब मैं अपने से यह सवाल करती हूँ, तो बड़ी पीड़ा से झुक जाती हूँ। जिस समाज में धर्म ही अड्डा जमाये, जम कर बैठा हो, उस समाज में क्या कोई भी औरत इन्सानी अधिकार समेत ज़िन्दा रह सकती है? जब धर्म अड्डा जमाता है, पुरुषतन्त्र भी वहाँ दखलंदाज हो जाता है। जहाँ धर्म और पुरुषतन्त्र की जय-जयकार हो, वहाँ औरत का परिचय दासी या यौन-सामग्री या सन्तान उत्पादन की मशीन के अलावा और कुछ नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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