लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
मुझे यह सोचकर भला लगता है कि कट्टरवाद-विरोधी इस संग्राम में, मैं अकेली नहीं हूँ। अनगिनत धर्मयुक्त, युक्तिवादी, मानववादी इन्सानों के जुलूस में एक मैं भी शामिल हूँ। 'मैं' तो अकिंचन, क्षुद्र इन्सान हूँ, लेकिन 'हमलोग' कहीं से भी अकिंचन या क्षुद्र नहीं हैं। मुमकिन है, किसी दिन यह शत्रु-पक्ष 'मुझे बड़ी आसानी से ख़त्म कर दे। लेकिन 'हमलोगों को नहीं, मझे हर पल मौत की आशंका के साथ जीना पड़ता है। उस दिन मुझे मरकर भी चैन मिल जायेगा, जिस दिन मुझे पता चलेगा कि औरतों ने अपनी सबसे बड़ी और विरोधी ताकत की शिनाख्त कर ली है। उस ताकत का नाम है-धर्म, कट्टरवाद! उस दिन मरकर भी मेरी आत्मा को शान्ति मिलेगी, जिस दिन मैं जानूंगी कि दुनिया में कट्टरवाद का अस्तित्व नहीं रहा और औरत अपने समूचे अधिकार के साथ, शिक्षा और आत्मनिर्भरता के साथ, समग्र श्रद्धा-सम्मान के साथ जीने लगी है। अब कहीं कोई कट्टरवाद नहीं रहा जो कहे, सिर पर आँचल डालो, बुर्के में बदन ढाँको, घर से बाहर मत निकलो, पराये मर्दो के सामने मत जाओ, हँसो मत, बात मत करो! हाँ, मरकर भी मैं चैन महसूस करूँगी, जिस दिन मुझे यह जानकारी मिलेगी कि अब कहीं किसी कट्टरवाद का नामोनिशान नहीं रहा, जो आँखें तरेरकर कहे-पति की दासी बनकर रहो, पति के आदेश का अक्षर-अक्षर पालन करो, पति की अन्य औरतों को कबूल कर लो, पति जितना चाहे, उतनी सन्तानों को जन्म देना, जुबान बन्द किये पति की मार खाती रहो। अब कहीं, कोई ऐसा कट्टरवाद नहीं, जो तर्जनी उठाकर कहे-तुम किसी की भी उत्तराधिकारिणी नहीं हो, तुम किसी की कोई नहीं हो, तुम्हारी ज़िन्दगी, तुम्हारी नहीं है, तुम्हारा जीवन दूसरों की सुविधा के लिए है, दूसरों के मंगल के लिए है। तुम इन्सान नहीं हो, तुम नर्क की कीट हो, तुम दोज़ख़ का द्वार हो।
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- इतनी-सी बात मेरी !
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- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
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- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
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- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
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- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
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- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
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- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
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- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं