लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
सप्तमी जैसी औरतें चारों तरफ़ मरी पड़ी हैं, मैं उन औरतों के बारे में जानती हूँ, जिनके पतियों ने दूसरी शादी रचा ली, कहीं और गृहस्थी बसा ली, अब वे पलटकर भी नहीं देखते। मैं उन औरतों के बारे में जानती हूँ, जिनके पति उन लोगों को मार-मारकर, हड्डी-पसली तोड़ कर बिठा देते हैं। मैं उन औरतों की बातें जानती हूँ, जो दिन-दिनभर अमानवीय मेहनत-मशक्कत करती हैं, जो पैसे कमाती हैं, उनका शराबी-कबाबी, जुआड़ी-पति, शाम को आता है और सारी की सारी कमाई छीन ले जाता है। मैं यह भी जानती हूँ कि वही औरतें परम जतन से माँग में सिन्दूर भरती हैं, परम आह्वाद से शांखा पहनती हैं।
'भई, शांखा-सिन्दूर न पहनो तो सैकड़ों तरह की सम्भावनाएँ होती हैं। किसी से मुहब्बत कर सकती हो, उससे शादी करके, नयी ज़िन्दगी शुरू कर सकती हो। मुमकिन है, किसी भलेमानस से भेंट हो जाये।
मेरी बात सुनकर, सप्तमी ने ज़ोर का ठहाका लगाया।
'नहीं, नहीं, हमारे यहाँ शादी एक बार ही होती है। हमारा पति एक ही होता है। आप भले मानस की बात करती हैं? ना, दीदी, किसी का विश्वास नहीं! शुरू-शुरू में भले होते हैं, मगर अन्त में सभी मानस मेरे पति जैसे निकलते हैं।' सप्तमी ने जवाब दिया।
सप्तमी ने ही एक दिन मुझसे कहा, 'बदजात लोगों से बचने के लिए, हमें शांखा सिन्दूर पहनना ही पड़ता है। इस हुलिया में देख कर, लोग समझ जाते हैं कि हम लावारिस माल नहीं हैं।'
मुझे जानकारी मिली शांखा-सिन्दूर औरत के जीवन में विराट सुरक्षा है, पति का भले कोई अस्तित्व न हो, इसके बावजूद, औरत को लावारिस माल समझ कर, सियार-चील उन्हें नोच-खसोट कर तो नहीं खायेंगे। इसी वजह से शांखा-सिन्दूर का आश्रय, उन औरतों को लेना ही पड़ता है।
लेकिन मुझे नहीं लगता कि शांखा-सिन्दूर, औरत के जीवन में कोई विराट सुरक्षा है। जो मर्द औरत को नोच-खसोट कर खा जाने के लिए आता है, बलात्कार के लिए टूट पड़ता है, किसी बदनीयती से बदमाशी करता है, ऐसे पुरुषों के लिए शांखा-सिन्दूर कोई बाधा नहीं होती।
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- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं