लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
बांग्ला को लिंग-निरपेक्ष भाषा बनाने के मामले में एक बहुत बड़ी सुविधा भी है। सविधा यह है कि अंग्रेजी में 'ही' और 'शी,' बांग्ला में 'वह' है। 'हिम हर दिन सारे शब्द, 'उसका/उसे' बन गया है। औरत-मर्द, दोनों के लिए, एक ही शब्द का प्रयोग भाषा को लिंग-निरपेक्ष बनाने में व्यापक सम्भावनाओं का संकेत देता है।
हर समय पति-पत्नी का प्रयोग क्यों? 'पत्नी-पति' भी तो कहा जा सकता है। 'उत्तम-सुचित्रा' के बजाय 'सुचित्रा-उत्तम' भी तो विकल्प के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है।
भाषा को शुद्ध बनाने की बात इसीलिए कही जा सकती है कि भाषा सिर्फ़ हमारी मानसिकता का प्रतिफलन ही नहीं है। भाषा हमारी मानसिकता का गठन भी करती है। अगर हर वक़्त, ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया जाये जो भाषा औरत को दर्बल. परनिर्भर, निम्न श्रेणी जीव के तौर पर चिन्हित न करे, क्योंकि यही धारणा इन्सान की मानसिकता में अनजाने में ही रस-बस जाती है कि औरतें शायद सच ही दर्जल परनिर्भर, निम्न श्रेणी की जीव होती हैं।
यह दुनिया आधुनिक होती जा रही है। इन्सानों में समता और समानाधिकार का बोध बढ़ता जा रहा है। औरतें, ज़ंजीर तोड़ कर बाहर निकल रही हैं। हमारी सोच-फिक्र, ध्यान-धारणा में विवर्तन हो रहा है, फिर इस्तेमाल की जानेवाली भाषा में विवर्तन क्यों न हो?
दरअसल भाषा बेहद सशक्त जरिया है। साहित्यकार जानते हैं कि औरतें जो वैषम्य की शिकार हैं, वे लोग भी बखूबी जानती हैं कि भाषा की ताकत ज़बर्दस्त है। जिस समाज में जितने ज़्यादा लोग भाषा की शुद्धता लाने की कोशिश करेंगे, वह समाज उतना ज़्यादा सभ्य होगा।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं