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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


चलते-फिरते मैं हर रोज़ ही पुरुषतान्त्रिक वाक्यों का सामना करती हूँ। फर्ज़ करें, सुब्रत ने मुझे आमन्त्रित किया, मैं गयी। मैंने फैसला किया कि अपने साथ अपने मित्र अमित को ले जाऊँगी। जैसे ही मैंने यह बात सुब्रत से कही, वह फौरन अमित से फोन पर बात करना चाहेगा। उसे बतायेगा कि वह मुझे अमुक पते पर, उसके घर ले आये, अमुक पता, अगर कोई पहचानता था, तो वह था मेरा ड्राइवर और मेरी गाड़ी में जो नक्शा रखा हुआ है, वह देख-देख कर मैं खुद भी उसका पता-ठिकाना खोज सकती थी, जो अमित के लिए कतई सम्भव नहीं था। मेरी गाड़ी में बैठकर अमित आराम से गाने सुनता है और या तो मेरा ड्राइवर या मैं, पता खोज निकालते हैं। सुब्रत के यहाँ पहुँची तो मुझे पता चला कि सुब्रत, उसके घर वाले, उसके यार-दोस्त, सभी यह ख़बर जानते हैं और वे लोग बाकी लोगों को बताते हैं कि अमित नामक एक लड़का मुझे उनके घर लाया है।

मैंने गौर किया है कि जहाँ कहीं मैं किसी ऐसी दावत पर गयी हूँ, जहाँ ढेरों मेहमान जमा हैं, वहाँ पहुँचते ही अकेली लड़की देख कर लोग सवाल करते हैं, 'किसके साथ आयीं?' या 'कौन ले कर आया तुम्हें ?'

कोई अकेले लड़के से यह सवाल नहीं करता। औरतें ही कहीं अकेली नहीं जा सकतीं, इसी विश्वास के साथ, ऐसी भाषा का प्रयोग होता है।

रोजमर्रा के जीवन में, हर दिन ही पुरुष को ही प्रधान बनाने वाले वाक्यों का इस्तेमाल किया जाता है। और यह सुनकर किसी के भी कान या मन को खटका नहीं लगता। 'सुब्रत अभी-अभी अपनी बीवी को ले कर बाहर निकल गया। इसके बजाय यह भी तो कहा जा सकता है, 'सुब्रत और उसकी बीवी अभी-अभी बाहर निकले हैं।'

'दे आर मेकिंग लव'-बांग्ला की कथ्य भाषा में इस किस्म के वाक्य प्रचलित नहीं हैं जो जुमला प्रचलित है, उसमें दोनों लोगों का शामिल होना, जाहिर नहीं होता। इस मामले में एक जन को 'ऐक्टिव' और दूसरे को 'पैसिव' माना जाता है।

कवि और महिला कवि-यह युगों से कहा जाता रहा है जबकि औरत-मर्द, दोनों के लिए 'कवि' शब्द का प्रयोग ज़रूरी है। लेकिन ऐसा न करके औरतों को अगर ‘महिला-कवि' कहा जाये, तब पुरुषों को भी सिर्फ 'कवि' न कह कर, 'पुरुष कवि' कहना चाहिए। इसी तरह पत्रकार और महिला-पत्रकार! या तो दोनों को 'पत्रकार' कहा जाये या 'पुरुष पत्रकार' और 'महिला पत्रकार' कहा जाये।

'तुम्हारे पुरखे कितनी पीढ़ियों से यहाँ रह रहे हैं?' यह न पूछकर, यूँ भी तो पूछा जा सकता है, 'तुम्हारे पूर्व-पुरुष कहाँ के निवासी थे?' -इसके बजाय यूँ भी पूछा जा सकता है कि, 'तुम्हारी पिछली पीढ़ियाँ कहाँ की निवासी थीं?'

'मेरे कर्ता कलकत्ता में नहीं हैं। यह न कह कर, यह भी तो कहा जा सकता है-'मेरे पति' या फर्ज़ करें, नाम कल्याण है, तो कहा जाये, 'कल्याण कलकत्ता में नहीं हैं।' पति को–'एइ, एइ, सुनते हो?,' 'कहाँ हो, जी?' या 'पिंकी के पापा कहाँ गये?' इस अन्दाज़ में न बुलाकर, सीधे नाम से क्यों न बुलाया जाये? फर्ज़ करें, नाम है-अभीख! तो सीधे 'अभीख' ही बुलाया जाये।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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