| लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
 अपने अधिकार के बारे में औरत अगर ज़रा सी भी सजग होती तो वह समझ पाती कि दुनिया में औरतों के खिलाफ़ जितने भी निर्यातन हैं, उनमें सबसे बड़ा निर्यातन है-औरतों को सुन्दरी बनने के लिए इसके पीछे औरतों की बेशुमार दौलत स्वाहा हो, बेभाव समय बर्बाद हो, खूब दिमाग़ लगे, हर तरह से इनका सर्वनाश हो। पुरुष परम निश्चिन्त, परम सुरक्षित ढंग से तोंदवाले, दौलतमन्द, कुत्सित, बेडौल शरीर के बावजूद, दुनिया भर की विभिन्न क्षमता की बहाल तबीयत से विराज करते हैं। कोई भी उन लोगों के शारीरिक सौन्दर्य के बारे में कतई चिन्तित नहीं होता। उन लोगों के कामकाज देख कर प्रशंसा में पंचमुख हो उठता है। इन सबका कहीं कुछ व्यतिक्रम नहीं है, ऐसा भी नहीं है। लेकिन व्यतिक्रम कभी उदाहरण नहीं बन सकता। बहुतेरे लोग शायद यह कहें कि फिल्म-थियेटर और विज्ञापनों की दुनिया में पुरुष का सौन्दर्य गिनाया जाता है। हाँ, कुछेक क्षेत्रों में ऐसा भी होता है लेकिन तुलना में नितान्त नगण्य है। अब फिल्मों की ही बात लें। क्या किसी बेहद मोटी अभिनेत्री को दिलीप कुमार जैसा स्टार समझा जा सकता है? जिस शरीर के साथ गोविंदा हीरो बनता है, किसी स्थूलकाय लड़की या औरत को हीरोइन बनने का मौका दिया जाता है? अमिताभ बच्चन अपनी त्वचा पर सैकड़ों झुर्रियों के बावजूद आज भी मेगा स्टार बने हुए हैं। लेकिन रेखा को अपने माथे की झुर्रियाँ मिटा कर ही टिके रहना पड़ता है। उत्तम कुमार उम्रदराज़ हो जाने के बाद भी घर से बाहर निकलते रहे, सौमित्र चट्टोपाध्याय झुर्रियों सहित यहाँ-वहाँ घूमते-फिरते हैं। उनकी स्टार-ख्याति कहीं से भी कम नहीं हुई, बल्कि बढ़ गयी है। लेकिन सुचित्रा सेन को गृहबन्दी हो कर रहना पड़ता है। अगर वे बाहर निकलीं तो उनकी स्टार-ख्याति तत्काल अलविदा कह देगी। वे भी इस बात को बखूबी जानती हैं इसलिए आम जनता को दर्शन नहीं देतीं। सालों से वह छिपी हुई हैं। सुचित्रा सेन विलक्षण अभिनेत्री थीं लेकिन इतनी विराट अभिनेत्री को भी अपने शरीर की वजह से सम्मान अर्जित करने की ज़रूरत आ पड़ी। त्वचा पर झुर्रियाँ उभर आयें, स्तन झूल जायें, बालों में सफेदी आने लगे, तो औरत चाहे कितनी भी बड़ी अभिनेत्री क्यों न हो, औरत को सम्मान नहीं मिलता। अनेक पुरुष, फिल्म-निर्देशक अपर्णा सेन की प्रतिभा के आस-पास भी नहीं पहुँच सकते लेकिन इसके बावजूद अनजाने में ही वे पुरुषतान्त्रिक समाज की खूबसूरत शिकार बनी बैठी हैं। उन्हें भी कैसे भयंकर रूप से सजना पड़ता है। उन्हें भी यह साबित करना पड़ता है कि वे खूबसूरत हैं। और साहित्य जगत? सुनील गंगोपाध्याय का ही चेहरा देखें, तारापद राय को देखें। वैसा चेहरा लेकर क्या कोई महिला-लेखिका दो दिन भी टिक सकती है?
 
 			
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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