लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
एन जी ओ समुदाय का कहना है कि औरत अगर पढ़ी-लिखी हो, आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हो तो कन्या-सन्तान या कन्या-भ्रूण की हत्या बन्द हो जायेगी। अधिकांश लोगों का विश्वास है कि सुनियोजित कन्या-हत्या शायद गरीब और अशिक्षित लोगों में ही होती है। लेकिन हकीकत बिलकुल उल्टी है। भारत में लड़कों के सर्वाधिक अनपात में कम लडकियाँ दक्षिणी दिल्ली में हैं, जहाँ पढ़े-लिखे और अमीर लोग रहते हैं। वहाँ सबसे ज़्यादा लड़कियाँ गायब हुई हैं। बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों की नाक तले यह कन्या हत्या जारी है। 904 से यह संख्या 845 पर उतर आयी है। 24,000 कन्या-सन्तान को इसी दक्षिणी दिल्ली से हर साल ग़ायब किया जा रहा है। गुजरात के पटेल वंश में विस्मय का अन्त नहीं है। वे लोग धनी किसान हैं। लेकिन उन लोगों के गाँवों में कहीं लड़की का अता-पता नहीं है। चण्डीगढ़ में कुल 853 लड़कियाँ हैं। चण्डीगढ़ शहर में तो यह दर और भी कम है, कुल 844। अनपढ़ इलाकों के मुक़ाबले धनी और पढ़े-लिखे लोगों के इलाकों में कन्या-सन्तान का अनुपात कम है। सबसे ज़्यादा हत्याएँ वहीं होती हैं। लड़कियों के ख़िलाफ़ समूचे देश में टिडिडयाँ मँडरा रही हैं। गण-हत्या! पश्चिम बंगाल के अन्यान्य हिस्सों से शहर कलकत्ता में लड़कियाँ ज़्यादा ग़ायब की जा रही हैं।
पिछले दो दशकों में 1 करोड़ औरतों का गर्भपात कराया गया है। सन 1997 में, आज़ादी की पचासवीं वर्षगाँठ पाँच लाख कन्या-सन्तानों को भारत की माटी पर जन्म लेने का अधिकार नहीं मिला जो भारत पृथ्वी का सबसे बड़ा 'गणतन्त्र' होने का गर्व करता है।
इस देश में लड़कियाँ बड़ी तेज़ी से विलुप्त हो रही हैं। इसके पीछे हैं लम्बे समय से चले आ रहे नारी-विरोधी कुसंस्कार। काफ़ी सारे सम्प्रदायों में बेटों को ही सन्तान माना जाता है, बेटियों को नहीं। 980 वर्ष पहले तक कन्या-सन्तान के पैदा होते ही उसकी हत्या कर दी जाती थी। उन दिनों तक कोख के अन्दर ही मार डालने का प्रचलन शुरू नहीं हुआ था। भ्रूण-हत्या जिस अनुपात में बढ़ रही है, इसे निषिद्ध घोषित किये जाने के बाद भी जिस हद तक बढ़ गयी है, उससे यह आशंका होती है कि समाज में जब तक औरतों की स्थिति में सुधार नहीं आता, यह हत्याकाण्ड चलता रहेगा। इस रक्तपात को रोकने का कोई उपाय नहीं है। उत्तर भारत तो ऐसी भयावह स्थिति में खड़ा है कि आशंका की गयी है कि सन् 2021 में औरत का नामोनिशान तक नहीं बचेगा।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं