लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
रोती हुई गुस्सैल औरतों ने कहा, 'तुम लोग आखिर क्या चाहते हो? हम अपनी बेटियों का क्या करेंगी? हम उन्हें क्यों बचाये रखें? इसलिए कि वह निर्यातित हों, जैसे हम हो रही हैं? इसलिए कि वह ज़िन्दगी भर दुख दर्द भोगें, जैसे हम भुगत रही हैं?'
समाज में लड़कियाँ यही शिक्षा पाते-पाते बड़ी होती हैं कि लड़की जात का कोई मोल नहीं होता। पुरुष को अगर तृप्त और सुखी नहीं कर पायी तो वह लड़की निरी अक्षम होती है और समाज में निरर्थक जीव के तौर पर सामाजिक निन्दा और घृणा की शिकार होगी। यह बात सच है कि औरत की बोध-बुद्धि, विलक्षणता, दक्षता, पारदर्शिता का कहीं कोई मोल नहीं दिया जाता। औरतों के सेक्स का सौदा किया जाता है, उनके चरित्र को कम नोर समझा जाता है और यह विश्वास किया जाता है कि औरत की जात ही 'नीच जात' होती है। लड़की पैदा होते ही ज़िन्दगी किस क़दर दूभर हो उठती है, यह जान-समझकर ही औरतें केवल बेटा चाहती हैं। बेटी कोई भी नहीं चाहती। पारिवारिक और सामाजिक दबाव ही औरतों को बेटी-हत्या या बेटी-भ्रूण-हत्या के लिए लाचार कर देता है। यह सच है कि औरतें ही इस हत्या में हिस्सा लेती हैं, लेकिन उन लोगों को कोई दोष कैसे दूँ। वे लोग तो इस खेल में महज मोहरा मात्र हैं। कानून की नज़र में इस किस्म की हत्या, गुनाह है। जो सचमुच अपराधी हैं, उन्हें सज़ा न देकर, आजकल औरतों को ही इसकी सज़ा दी जाती है। इस कुत्सित लिंग-वैषम्य भरे समाज में, भ्रूण-हत्या या शिशु-हत्या के गुनाह के लिए, जब औरत को सज़ा दी जाती है, तब वह दो बार सज़ा पाती है। अपराध नम्बर एक-खुद लड़की के रूप में जन्म लेना, अपराध नम्बर दो-औरत हो कर किसी और लड़की को जन्म देने के लिए विवश करना। औरतें कन्या-सन्तान की हत्या आखिर क्यों करती हैं? इसलिए कि लड़की पैदा करके उन्हें लात खानी पड़ती है, ज़्यादा लड़कियाँ पैदा की, पति ही उन्हें खदेड़ देता है। इन औरतों को पीहर में भी ठौर नहीं मिलता। इसलिए बेटी-हत्या करके, वे लोग अपनी बेटी को तो बचाती ही हैं, अपने को भी बचा लेती हैं।
क़ानून की तरफ़ से निषिद्ध होने के बावजूद, लोग बेझिझक होकर भ्रूण-हत्या और शिशु-हत्या करते हैं। वैसे तो नारी-निर्यातन भी कानूनी तौर पर निषिद्ध है। लेकिन नारी-निर्यातन क्या जारी नहीं है? चारदीवारी के अन्दर किसका क़ानून चलता है? वहाँ, पुरुषकर्ता का कानून चलता है। पुरुष-शासित समाज में पुरुष पर-इल्जाम लगाकर कौन-सी औरत पार पायेगी। बाकी ज़िन्दगी उसे कौन जीने देगा?
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं