लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
उसीलम्पट्टी, सालेम, धरमपुर, उत्तर आरकट, पेरियार, दिन्दिगुल, मदुरै वगैरह अंचलों को लड़की-शिशु-हत्या-अंचल के रूप में चिन्हित कर दिया गया है। तमिलनाडु के कुछेक अंचलों में लड़की-शिशु-हत्या की एक पुरानी परम्परा है। माँ-दादी सद्यःजात बेटी के मुँह में एक बूंद दूध डालती हैं, उसमें पीले करबी फूल का पाउडर मिला देती हैं। जो लोग विज्ञान में अतिशय विश्वासी होते हैं, वे लोग नींद की थोड़ी-सी दवा भी पीसकर या थोड़ी-सी कीटनाशक दवा, दूध में मिला देते हैं। बहरहाल, लड़की-शिश-हत्या सिर्फ उन्हीं कुछेक अंचलों में ही नहीं, इसकी परम्परा तो समूचे देश में प्रचलित है। लेकिन हत्या का तरीका अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। गुजरात में औरतें सद्यःजन्मी बेटियों को दूध में डुबोकर मार देती हैं। पंजाब में मिट्टी की हाँडी में बेटी को ढूंसकर, हाँडी का ढक्कन अच्छी तरह बन्द कर देती हैं। और उसे मिट्टी में गाड़ देती हैं। बहुतेरे लोगों को यह अहसास ही नहीं है कि लड़की-हत्या कोई अपराध है। बहुत से सम्प्रदायों में इसे बेहद स्वाभाविक काम माना जाता है।
शिशु-हत्या नृशंस कार्य है। आजकल थाना-पुलिस के झमेले में भी फंस जाते हैं। इसलिए सबसे अधिक सुरक्षित है लड़की भ्रूण-हत्या! चूँकि यह देखने में नृशंस नहीं होता, इसलिए अपराध-बोध का सवाल ही नहीं उठता। आजकल स्कैनिंग बड़े सस्ते में कराया जा सकता है। लिंग-निर्णय और गर्भपात के सभी किस्म का आधुनिक इन्तज़ाम अब गाँव-देहातों के बिलकुल भीतरी हिस्सों में प्रवेश कर गया है। पहले लोग बेटे की चाह में भगवान से बेटा माँगते हुए मन्दिर-मन्दिर दौड़ते थे, साधु-संन्यासियों के पीछे दौलत उँडेलते थे। अब किसी टोने-टोटके की ज़रूरत नहीं रही, भारत में भगवान से भी ज़्यादा शक्तिशाली माध्यम आ गया है विज्ञान! अब तो स्कैन-मशीन, एम्नीओसिंथेसिस जैसे उपकरण आ गये हैं। वैज्ञानिक-जाँच के जरिये कोख में पलते भ्रूण का लिंग देख कर फैसला कर लिया जाता है। लिंग अगर सही नहीं हुआ तो कोख से ही उसे विदा कर दिया जाता है। ठीक लिंग है-पुरुष, गलत लिंग है-स्त्री! स्वस्थ लिंग है-पुरुष! पंगु लिंग है-स्त्री।
तमिलनाडु की औरतों ने यह क़बूल किया है कि उन लोगों ने अपनी बेटियों की हत्या की है और इस करतूत के लिए उन लोगों को बिलकुल भी अफसोस नहीं है। किसी भी औरत के मन में इसके लिए कोई पछतावा नहीं है।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं