लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
इस दिन समूचे देश में क्या होता है : विभिन्न देशों की सभाओं में लम्बे-लम्बे भाषण दिये जाते हैं। देश-देश में काफ़ी धूमधाम से रैलियाँ आयोजित की जाती हैं। शादीशुदा औरतें खूब-खूब साज-सिंगार करती हैं, खाती-पीती हैं, गाने गाती हैं।
उस दिन और भी बहुत कुछ घटता है। उस बहुत कुछ की खबरें बहुत-से लोगों को नहीं होतीं।
उस दिन अनगिनत औरतों को खाना नसीब नहीं होता। पीने का विशुद्ध पानी तक नहीं मिलने की वजह से तकलीफ पाती हैं। यहाँ तक कि दम भी तोड़ देती हैं।
उस दिन बेटी न पैदा हो इसके लिए भ्रूण हत्याएँ होती हैं। उस दिन समूचे परिवार को दुखी करके अनचाही लड़की जन्म लेती है। बेटी पैदा करने के गुनाह में सैकड़ों औरतों को उनके पति तलाक़ दे देते हैं।
उस दिन कन्या-शिशुओं की हत्या होती है। क्योंकि वे सब लड़कियाँ होती हैं। उस दिन कन्या-शिशुओं को कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाता है क्योंकि वे सब लड़कियाँ होती हैं। उस दिन उम्रदार पुरुष कन्या-शिशुओं का बलात्कार करते हैं।
उस दिन गाँव-गंज, शहर-नगरों में किशोरी, जवान युवतियों का सामूहिक बलात्कार किया जाता है। उस दिन पुरुष औरतों के बदन पर मिट्टी का तेल छिड़ककर, आग लगा देते हैं। उस दिन पुरुष, औरतों का गला दबाकर हत्या कर देते हैं। उस दिन पुरुष औरतों को भयंकर रूप से मारते-पीटते हैं। पुरुष औरतों की योनियों में एसिड उँड़ेल देते हैं। प्रेमी पुरुष प्रेमिकाओं को वेश्या-मुहाल में बेच देते हैं। उस दिन लाखों-लाखों औरतों को यौन-दासी या क्रीतदासी बनाने के लिए उन लोगों की एक-देश से दूसरे देश, एक शहर से दूसरे शहर, एक गाँव से दूसरे गाँव तस्करी की जाती है। उस दिन दलित, दंशित, अपमानित, अवहेलित, असम्मानित असंख्य औरतें अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए आत्महत्या करती हैं।
उस दिन जिन लोगों की डिमांड के कारण दुनिया करोड़ों-करोड़ औरतों को वेश्या या यौनदासी बनना पड़ा है (डिमांड हो तभी सप्लाई का प्रबन्ध होता है। डिमांड न हो, तो सप्लाई की ज़रूरत नहीं पड़ती), हमारी वे सब दुखियारी औरतें और पुरुष तान्त्रिक राजनीति की शिकार हो कर मनमाने ढंग से भोग की जाती हैं। नारी-दिवस पर औरतें सुबह से ले कर आधी रात तक पुरुष के अत्याचार में कचली-पीसी जाती हैं। यह ऐसा अत्याचार है जो पैशाचिक और पाशविक अत्याचार से हज़ारों-लाखों गुना ज़्यादा निर्मम है।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं