लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
इसके कुछ ही दिनों बाद ही न्यूयार्क में आग लगी, जिसमें एक सौ चालीस महिला-मज़दूर जल कर खाक हो गयीं। उनमें अधिकांश इतालवी और यहूदी महिलाएँ थीं। इस घटना के बाद अमेरिका में भयंकर श्रमिक आन्दोलन शुरू हो गया।
8 मार्च, 1913-1914 : यूरोप, अमेरिका में यह दिन 'अन्तर्राष्ट्रीय नारी-दिवस' के रूप में मनाया जाता रहा। महिलाओं ने प्रथम विश्वयुद्ध के विरुद्ध आवाज़ उठायी।
23 फरवरी, 1917 : बीस लाख रूसी महिलाओं ने खाद्य और शांति की माँग करते हुए अपनी असहनीय दरिद्रता के खिलाफ़ सभा आयोजित की।
उस ज़माने में रूस जूलियन कैलेण्डर मानता था। कैलेण्डर की 23 फरवरी ही जॉर्जियन कैलेण्डर की 8 मार्च बनी।
8 मार्च, 1975 : राष्ट्रसमूह ने इस दिन को 'अन्तर्राष्ट्रीय नारी-दिवस' घोषित किया।
दिसम्बर, 1977 : राष्ट्र समूह की एक आम सभा में एक प्रस्ताव का समर्थन किया कि राष्ट्रसमूह के सदस्य, सभी राष्ट्र, किसी भी दिन को नारी-अधिकार 'राष्ट्रपुंज दिवस' या 'अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति राष्ट्रसमूह' दिवस क़बूल किया जाये।
अब यह दिन कुछ यूँ है : यह दिन अब उतना राजनैतिक रहा, जितना पहले था। यह दिन किसी भी फादर्स डे, मदर्स डे, वेलेन्टाइन डे जैसा ही दिन है।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं