लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
इस किस्म का एक रिवाज प्रचलित है-विवाह की रात पुरुषों को बिल्ली मारना होती है। उसका बिल्ली मारना देख कर ही नयी औरत समझ लेती है कि यह मार उसकी तकदीर में भी लिखी है। इसलिए वह झुक जायेगी, विनम्र होगी, पुरुष के आदेश-निर्देशों का अक्षरशः पालन करेगी और पति-सेवा में अपना जीवन उत्सर्ग कर देगी। विवाह के दिन बिल्ली मारने के बजाय लड़के वाले लड़की के बाप पर हाथ उठाकर यह दिखाना चाहते थे कि हम तर बाप का ही परवाह नहीं करते तो तेरी परवाह क्या करेंगे? यहाँ सनेरा का पिता पुरुषों का प्रतिनिधि नहीं था। वह अपनी बेटी सनेरा का प्रतिनिधि था। इसीलिए वह इतनी आसानी से मार खा सका। सनेरा का पिता उस दिन अगर अपनी बेटी की जगह अपने बेटे का विवाह कर रहा होता तो किसकी मजाल थी जो उस पर हाथ उठाता?
जो घटना बड़े-बड़े शहरों में नहीं घटती, किसी छोटे-से गाँव के किसी छोटे-से परिवार के एकान्त में इस किस्म की बड़ी-बड़ी घटनाएँ घट जाती हैं। इन्हीं छोटे-छोटे गाँवों में ही मैंने देखा है कि अचानक कोई औरत अपने बलात्कारी का पुरुषांग काट देती है या भिन्न गोत्र, भिन्न धर्म के प्रेमी के साथ बेझिझक भाग जाती है।
औरतें इतिहास, भूगोल, पदार्थ विज्ञान और रसायन विज्ञान सीखने की तरह जितनी खूबसूरती से पुरुषतन्त्र की विद्या भी सीख लेती हैं, उस तरह 'लिखने-पढ़ने' से अनजान सनेरा जैसी औरतें नहीं सीख पातीं। इसलिए विवाह के मण्डप में भी उन लोगों को यह घोषणा करते हुए हिचकिचाहट नहीं होती-'यह विवाह मुझे क़बूल नहीं।' अडिग खड़े रहने, विवाह की माला उतार फेंकने में उन लोगों को ज़रा भी संकोच नहीं होता। हाँ, पुरुषतन्त्र के नियम-क़ानून, अगर उन लोगों ने रटे होते, तो वे लोग सकुचा जातीं। विवाह के दिन दूल्हा या दूल्हे के घरवाले अगर कोई और बड़ी दुर्घटना भी कर डालते, बेटी के बाप को सिर्फ़ पीटते ही नहीं, मार भी डालते, तो पुरुषतन्त्र की विद्या सीखी-पढ़ी औरतें शादी तोड़ने जैसा दुःसाहस नहीं करतीं। भई, कलंक भी तो कुछ होता है।
लेकिन सनेरा नहीं जानती थी कि क्या करने से कलंक की कीर्तिकथा रची जाती है। चूँकि वह नहीं जानती थी, इसीलिए ऐसा मुश्किल और ज़रूरी फैसला लेने में वह ज़रा भी नहीं हिचकिचायी।
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- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं