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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...


सनेरा ने अन्याय का विरोध किया। उसने इस बात की परवाह नहीं की कि इसके बाद क्या होगा। दुबारा विवाह नहीं हो सकेगा? न हो! उसे कोई परवाह नहीं थी। उल्टे उसने यह कहा, “शादी करना ही होगी, इसका क्या मतलब है?" नारी-विद्वेषी समाज में यह बात हर औरत की जुबान पर होनी चाहिए। लेकिन शहरी, शिक्षित और आत्मनिर्भर औरतों की जुबान पर भी ऐसे सशक्त जुमले नहीं उभरते, जैसा कि आलुन्दा गाँव की एक दरिद्र रिक्शेवाले की बेटी सनेरा की जुबान से उभरे। सनेरा जानती है कि शादी न करके भी वह मज़े से जी सकती है। उसने कहा भी है, “मैं सिलाई-बुनाई जानती हूँ, मैं कपड़े सिलूँगी। सिले हुए कपड़ों पर अल्पना बनाऊँगी। मेहनत-मशक्कत करते हुए समूची ज़िन्दगी गुज़ार दूंगी।" काश, ऐसा आत्मविश्वास आज सभी औरतों में होता तो दुनिया बदल जाती। औरत अगर यह फैसला कर ले कि वह अत्याचारी पुरुष के साथ अब ज़िन्दगी नहीं गुज़ारेगी, जैसा सनेरा ने किया। औरतें अगर समझ जायें कि दुष्ट गाय से सूना तबेला ही भला या किसी पाजी-बदमाश के साथ रहने से अकेले रहना, ढेर-ढेर भला है और अपनी दक्षता मुताबिक कोई काम ढूँढ़ लें और अपने परे आत्मविश्वास के साथ चलने का संकल्प लें, तो सच ही, दनिया बदलकर ही रहेगी। लेकिन सनेरा जैसी औरतें क्या बहुत अधिक होती हैं?

कई शादी-विवाह में लग्न जैसा कुसंस्कार होता है। लग्न से ज़रा भी इधर-उधर हुआ नहीं कि सर्व-ना-श! ना, पुरुषों का कोई सर्वनाश नहीं होता, होता है औरतों का! औरत का जिससे विवाह होता है, यह सोच ही लिया जाता है कि वह जीवन भर का संगी है। वह औरत को चाहे तो गृहस्थी की आग में झोंक दे या पुरुष के गलीजपन में सड़े, संगी को त्याग करना नहीं चलेगा। इस भारतीय उप-महादेश में मैंने जाने कितनी ही यन्त्रणाकातर औरतों की सूरत देखी है, जो न तो अपनी यन्त्रणा वहन कर पाती हैं, न सह पाती हैं। उन लोगों की ज़िन्दगी का बेशकीमती वक़्त, अनमोल महीने इसी तरह गुज़र जाते हैं। साल पर साल गुजर जाते हैं। क्या सभी औरतें मन ही मन सनेरा होने का सपना नहीं पालतीं? अगर पालती भी हैं तो अधिकांश औरतों में उस सपने को हक़ीकत बनाने का न तो साहस होता है, न शक्ति। औरत सिर्फ सपने ही देखती रहती है। भय और लज्जा, उन लोगों के सपनों को हमेशा-हमेशा सपने ही बनाये रखती है।

इसी तरह एक और विश्वास भी लोकप्रिय है कि औरत अगर पढ़ी-लिखी और आत्मनिर्भर हो, तो वह गृह-निग्रह की शिकार नहीं होती इस विश्वास को झूठ साबित करते हुए हर दिन ही औरतें घरों में निर्यातित होती हैं, जबकि वे लोग डॉक्टर, इन्जीनियर, वकील, गायिका, नायिका, कारोबारी-क्या नहीं होती! सच तो यह है कि जैसे स्कल-कॉलेज पास न करने वाली घरेल औरतों को गह-निग्रह सहना पडता है, वैसे ही डिग्रीधारी औरतें भी इसी किस्म का गह-निग्रह सहती हैं। इसकी वजह यह है कि दोनों ही औरतें हैं। दोनों ही भले शिक्षित हों, अशिक्षित हों, इस समाज की नज़रों में कमज़ोर होती हैं, दोनों ही द्वितीयलिंग हैं। सनेरा में पुरुषतन्त्र के उतने सारे तत्त्वों की समझ नहीं थी। सनेरा ने तो बस, अपनी इच्छा को समझा था और उस इच्छा को ही अहम माना। वह चीख उठी। उसने ऐसे टुच्चे से विवाह तोड़ दिया। सनेरा निश्चित रूप से पढ़ी-लिखी नहीं थी, आत्मनिर्भर भी नहीं थी। लेकिन उसमें आत्मनिर्भर बनने की सम्भावना मौजूद है, उसने इस बात की ज़ोरदार आवाज़ में घोषणा की। उसने कहा कि पुरुषनिर्भर, परजीवी औरतों के पाँव काँपते हैं। उसने सबको अपने पैरों पर खड़े होने को कहा! इन लोगों में कॉलेज-विश्वविद्यालय की डिग्रीधारी औरतों की संख्या कुछ कम नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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