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लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ

जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


और सच भी है। इस स्वतन्त्र भारत में यदि कोई बी.ए. का अध्ययन करना चाहे तो उसे कौन थाम सकता है? चित्र के अन्त में हीरो हीरोइन का हाथ पकड़ पब्लिक और कैमरेमैन की तरफ पीठ किए एक ओर चला गया। शायद कालेज उसी ओर रहा होगा।

बाहर आकर नरेन्द्र ने कहा, ''मेरे खयाल से मूलतः यह फिल्म दो प्राइवेट कालेजों की लड़ाई पर बनी है। एक कालेज से हीरो सम्बद्ध है और दूसरे से विलेन। प्रतियोगिता इस बात की है कि वह सुन्दरी कहीं से बी.ए. करेगी। वह विलेन के कालेज से बी.ए. करना नहीं चाहती, क्योंकि वहाँ  गुंडागर्दी ज्यादा है, इसलिए वह अस्वीकार कर देती है। हीरो का विद्यापीठ शायद बेहतर है।''

''बंगालवाले भी कमाल कर रहे हैं। कितनी नई थीम उठाकर फिल्में बना रहे हैं।'' मैंने कहा।

पान की दुकान पर भट्टाचार्य बाबू मिल गए। ''क्यों जोशी साहब, इधर कैसा आया?''
''फिल्म देखने आया था, दादा, बंगाली फिल्म।''
''अरे तुमको बंगाली समझता?''
''समझता तो नहीं, दादा, फिर भी हमने सोचा, अच्छा फिल्म है, देखना चाहिए।''
''अच्छा है, अच्छा है।''
''एंड समझ नहीं आया, दादा!''
''क्या नहीं समझा?''
''हीरोइन ने ग्रेजुएशन कर लिया कि नहीं, दादा?''
''कैसा ग्रेजुएशन?'' भट्टाचार्य आश्चर्य से बोले।
''हीरोइन कहती थी ना कि मैं बी.ए. करूँगी, मुझे कोई रोक नहीं सकता।''
भट्टाचार्य 'हो-हो' कर जोर से हँसे और बोले, ''खूब समझा तुम लोग। अरे, बीए मतलब बेचलर ऑफ आर्ट्स नहीं। बीए यानी ब्याह, शादी, मैरेज।''-और वे फिर जोर-जोर से हँसने लगे।

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