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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


हमें समझ नहीं आ रहा था कि कम्बख्त हीरोइन बी.ए. क्यों नहीं कर लेती? इतने समय में तो वह बी.ए. छोड़ एम.ए. कर सकती थी। और अगर वह बी.ए. नहीं करना चाहती तो न करे। इसमें खुद इतना परेशान होने या पब्लिक को बोर करने की क्या बात है? और वह हीरो सिर्फ इतनी-सी बात के लिए उस हीरोइन के पीछे क्यों लगा रहता है! दुनिया में और भी गम हैं बी.ए. करने के  सिवा।
''यार, मुझे तो इस हीरोइन के इण्टरमीडिएट होने में भी शक है।'' नरेन्द्र बोला, ''जिस तरह यह लड़की दिन-भर पानी भरती रहती है, कपड़े सुखाती रहती है, खाली बैठी रहती है, मैं नहीं समझता इसने कालेज की शकल भी देखी है।''

''तुम समझते नहीं, नरेन्द्र, बंगाल की परिस्थितियाँ हमारे मध्यप्रदेश से बिलकुल भिन्न हैं। वहीं पिछले वर्षों शिक्षा का तेजी से विकास हुआ है, गाँव-गाँव में कालेज खुल गए हैं और युवकों तथा युवतियों पर चारों तरफ से यह प्रेशर आ रहा है कि वे बी.ए., एम.ए. करें। युवक-युवती यह  निर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि वे बी.ए. करें या न करें। चारों तरफ बेकारी और असन्तोष है। बंगाल की आज जो हालत है, हम अच्छी तरह जानते हैं। फिल्म इसी पृष्ठभूमि पर तैयार की गई है कि आज किसी युवती के लिए बी.ए. करना जरूरी है या नहीं? बंगाल की दृष्टि से यह एक गम्भीर  समस्या है।'' मैंने नरेन्द्र को समझाया।

इण्टरवल समाप्त हो चुका था। हम हाल के अन्दर घुस गए और उसी गम्भीरता से आगे देखने लगे।
समझ नहीं आ रहा था कि हीरोइन यूनिवर्सिटी डिग्री लेने के मामले में गम्भीर है अथवा नहीं। वह हीरो के सामने मान लेती कि वह बी.ए. कर लेगी, जो जरूरी भी है, मगर जब विलेन उससे कहता तो वह साफ इनकार कर देती। एक बार तो उसने विलेन को कसकर डाँट दिया, ''जेटा आमी भावी, शेटा आमी कोरबो।'' अर्थात मुझे जैसा जँचेगा वैसा करूँगी। विलेन बिचक गया और उसने अपने निश्चित 'देख लूँगा, जाती कहाँ है' वाले अन्दाज में गरदन हिलाता, डण्डा घुमाता पगडण्डी से चला गया।

एक दृश्य में विलेन ने गाँव के कतिपय स्नेही मित्र टाइप के गुण्डों को एकत्र किया और शराब पिलाकर यह शैक्षणिक समस्या सामने रखी थी कि हीरोइन बी.ए. करने को तैयार नहीं, बोलो क्या करें। गुण्डों को आश्चर्य हुआ कि विलेन के इतने आग्रह के बावजूद वह लड़की बी.ए. करने से इनकार करती है। उन्होंने शराब पी और प्रश्न की गम्भीरता को समझा। बाद में उन्होंने लपलपाते छुरे और फरसे चमकाकर यह कसम खाई कि उनके होते यह सम्भव नहीं होगा कि हीरोइन बी.ए. न करे। उन्होंने विलेन को वचन दिया और पैर पटकते चले गए।

एक और दृश्य में हीरोइन की सहेली ने हीरोइन को इसी विषय में समझाते हुए कहा कि तुम बी.ए. क्यों नहीं कर लेतीं।
हीरोइन ने कुछ कहा जिसका अर्थ शायद था कि 'ठीक है, मैं कर लूँगी!'
मेरे खयाल से इसके बाद फिल्म समाप्त हो जानी चाहिए थी। आखिरी सीन में लड़की को बी.ए. कक्षा में बैठा दिखाकर 'दि एण्ड' किया जा सकता था, मगर ऐसा नहीं हुआ। विलेन के स्नेही मित्रों ने हीरो को डण्डों से पीटा। जवाब में हीरो ने भी हाथ दिखाए। शैक्षणिक
प्रश्न का अन्ततः इस स्तर पर निपटारा होगा, इसकी उम्मीद नहीं थी। हीरोइन ने हीरो की बाँह पर पट्टी बाँधी और कड़े शब्दों में अपने बाप से बी.ए. करने का ऐलान करते हुए कहा, ''आमा के बीए कोरते केऊ थामाते पारबे ना।''

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