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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


एक बंगला फिल्म

लड़कियाँ और विशेष रूप से सुन्दर लड़कियाँ बी.ए. करें, यह पुरानी और घर-घर की समस्या है। इस समस्या पर एक फिल्म भी तानकर खड़ी की जा सकती है, इसका हमें अनुमान न था। मगर बंगालियों की बात ही अलग। क्या कहने!
उस सिनेमा हाल में, जाने क्यों, हम अनफिट लग रहे थे। फिल्म की विशेषता थी कि वह बंगला में थी और हमारी विशेषता थी कि हम बंगला नहीं जानते। रहा कलाप्रेमी होने का सवाल तो कलाप्रेमी कोई मोर का पंख नहीं, जिसे सिर में खोंस लिया जाये। चारों ओर चटर्जी, मुखर्जी और भट्टाचार्य किस्म के लोग बैठे थे, धोती, कुर्ता पहने। और उनके सामने बैठे मैं और नरेन्द्र दोनों गँवार लग रहे थे। हमें बंगला नहीं आती। जब तक हाल में अँधेरा नहीं हुआ यही हालत बनी रही। हम चुपचाप सिर झुकाए बैठे रहे। अँधेरा हुआ, तो हमारा गँवारपन विलीन हो गया और एक बंगला फिल्म पूरी गरिमा के साथ दिखाई जाने लगी।

वह बंगला लेखक की बंगला कहानी पर बनी बगली फिल्म थी, जिसे बंगाल के एक प्रोड्यूसर ने बंगाली अभिनेता और अभिनेत्रियों की मदद से बंगाल में ही बनाई थी। कहानी बंगाल के एक छोटे-से कस्बे में रहनेवाले बंगाली परिवार की थी। यानी उसमें सबकुछ बंगाली था। नरेन्द्र जो थोड़ा-बहुत संगीत समझता है, बता रहा था कि पृष्ठभूमि में जो संगीत बज रहा है, वह भी बंगाली है। इतने सबके बावजूद हमने पूरी कोशिश की कि चित्र को समझा जाए।

और हम बड़ी जल्दी समझ गए कि फिल्म सामान्य प्रेमकथा नहीं है। हीरोइन (आह, क्या भरी-पूरी हीरोइन थी!) इण्टर कर चुकी है और उसके बी.ए. करने की समस्या है। पूरा ताना-बाना इस छोटी-सी समस्या को लेकर बुना गया था। हीरो भी इसी समस्या से ग्रस्त था। हीरोइन से पहली मुलाकात में ही पूछा, ''तोमार  होये गे छे?''
हीरोइन ने इस प्रश्न पर कुछ उड़ता-उड़ता सा जवाब दिया, ''आमार  कोरबार दोरकार नेईं।''

हम समझ गए कि लड़की इण्टर कर चुकी है, मगर फिलहाल बी.ए. करने के मूड में नहीं है, मगर हीरो चाहता था कि हीरोइन बी.ए. कर ले। वह जब मिलता, हीरोइन से एक ही प्रश्न घुमा-फिराकर करता, '' कोरबे ना कोरबे?''

हीरो शायद उसी वर्ष बी.ए. में बैठ रहा था और चाहता था कि हीरोइन भी साथ ही बी.ए. कर ले, परीक्षा में बैठ जाए। झरने के पासवाले सीन में, जिसमें काफी सारे बादल दिखाए गए थे और बड़ा सुरीला बेकग्राउण्ड म्यूजिक बज रहा था, उसने उस भरी-पूरी हीरोइन का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा था, ''आमार शोंगे  कोरबे?''
हीरोइन लजा गई। हमें लगा, वह वास्तव में पढ़ना चाहती है, मगर चाहकर भी आगे पढ़ नहीं पा रही है।

पिक्चर में एक अदद विलेन भी था, जो जमींदार किस्म का शख्स था और हाथ में डण्डा रखता था। वह भी चाहता था कि हीरोइन ग्रेजुएट हो जाए। जब हीरोइन अपने घर पर जल प्रदाय की शाश्वत समस्या का हल खोजने कमर में घड़ा दाब झरने की तरफ जाती, विलेन पगडण्डी काट खड़ा हो जाता और कहता, ''शुंदोरी! आमी तोमार शोंगे बीए कोरबोई कोरबो!''
हमें आश्चर्य हुआ कि यह मुछन्दर विलेन बी.ए. करने से अभी तक सिर्फ इसीलिए रुका हुआ है, क्योंकि यह हीरोइन शुंदोरी के साथ बी.ए. करना चाहता है! इसी नजारे के आसपास इण्टरवल हो गया और हम समोसों की दिशा में लपके।

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