लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
''यार, यह रंडी तो खूब नाची! इसका सीन फिर से दिखवाओ।'' जागीरदार साहब ने
कहा।
सिंग साहब ने बड़े भैया को बुलाकर कहा, ''डान्स का सीन फिर से दिखवाओ।''
मशीन रोकी गई। मोहन दादा ने फिल्म को उलटी लपेट डान्स का सीन फिर से दिखवाया।
जागीरदार साहब की तबीयत नहीं मानी, ''और दिखवाओ।''
मशीन फिर रोकी गई। फिर वही सीन दुहराया गया।
जागीरदार ने तीसरी बार भी माँग की, पर इस बार बड़े भैया हाथ जोड़ जागीरदार साहब
के सामने झुक गए, ''महाराज, आप कला के सच्चे पारखी ठहरे! आपका मन नहीं
मानेगा। मगर हुजूर, बारह बज गए हैं और मुझे अभी सेकण्ड शो भी करना है।''
जागीरदार साहब ने प्रार्थना सुनी और आगे की फिल्म देखने लगे। सौभाग्य से आगे
कोई डान्स नहीं था।
सिनेमा की सफलता के मूल में है बड़े भैया का नम्र, कोमल और मिलनसार
व्यक्तित्व, अन्यथा कस्बे के लोग ऐसे टिरी मिजाज हैं कि पुजारी से नाराज हो
जाएँ तो उसके मन्दिर में भगवान के दर्शन करने भी नहीं जाएँ। वे कस्बे की जनता
को बरसों से फिल्म दिखा रहे हैं। एक मिशन है। वे निष्ठा से अपने काम में लगे
हुए हैं। कस्बा उनका दर्शक परिवार है, जिसमें उनका व्यक्तित्व घुल-मिल
गया है।
कल रात गर्मी ज्यादा थी। राजकपूर-वैजयन्तीमाला की जोड़ीवाली किसी फिल्म को
समाप्त कर, टाकीज की लाइटें बुझा, ताले डाल कैश नगदी और चाबी का गुच्छा
जेब में डाल घर जाने के पहले बड़े भैया ने सिनेमा की ओर देखा (वे अपने
सिनेमाघर की ओर ऐसे देखते हैं, जैसे शाहजहाँ अपने ताजमहल की ओर देखता था) और
बोले, ''विशेशर भाई, एक बार कहीं से रुपया उधार करूँ और हॉल में पंखे लगवा
दूँ। बड़ा दिल करता हैगा!''
विशेशर बाबू सिनेमा देखने के बाद सदैव के अनुसार गम्भीर विचारों में डूबे हुए
थे। बोले, ''होगा, बड़े भैया, एक दिन यह भी होगा। ईश्वर पर भरोसा रखो। वह सब
देखता हैगा। जिसने तुम्हारे हाथों से पब्लिक के लिए इतना बड़ा सिनेमा
खड़ा करवा दिया, वह पंखे भी लगवाएगा। मालिक मददगार हैगा। वह सबका मददगार
हैगा।''
''यह तो है ही।'' घर की ओर धीरे-धीरे चलते बड़े भैया ने कहा।
''आदमी पुन कर ले और तबीयत का नेक हो तो ईश्वर उसका मंशा पूरा करता हैगा।
राजकपूर बिचारे पर क्या-क्या तकलीफ नहीं आई? कैसी-कैसी बिपदा नहीं झेली बापड़े
ने! मगर दिल का ईमानदार और धुन का पक्का था, सो वैजयन्तीमाला को हासिल करके
रहा। ऐसा ही है, भैया विश्वास रखो, ऊपरवाले पर भरोसा रखो, पंखे भी लग
जाएँगे।''
''यह तो है ही।''
चौराहे पर दोनों के रास्ते अलग-अलग होते हैं। वहीं एक क्षण ठिठककर विशेशर से
पूछा, ''बड़े भैया, एक बात बताओ।''
''क्या?''
''शादी के बाद अब वैजयन्तीमाला के बाप की प्रापर्टी तो राजकपूर को ही मिलेगी,
क्योंकि लड़की के कोई भाई तो है नहीं!''
''और नहीं तो क्या?''
''वाह रे ईश्वर, क्या तेरी माया है!'' विशेशर ने लम्बी साँस ली।
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