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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


''अन्दर धरवा दी, ठंडक में।''
''मजाक तो नहीं कर रहे?''
''तुम्हारी सौं!''
उन्हें इतमीनान हो जाता है। तभी दूसरे आ जाते-''काय भैया, राम और साम की पेटी आ गई?''

पीले और गेरुग रंग में पुता हुआ कस्बे का सिनेमाघर, जिसकी पिछली दीवार पर लड़कों ने सभी प्रसिद्ध अभिनेता और अभिनेत्रियों के मध्य अश्लील सम्बन्धों की स्थापना कर रखी है, कस्बे की जान है। शाम को पाँच बजे चौराहे के नल से पानी ला सिनेमा के सामने छिड़काव हो जाता। टिकटघरवाले मेहता बाबू समय पर आकर बैठ जाते हैं। आप सुबह के वक्त प्रायवेट छात्रों के लिए इन्टर-मैट्रिक की कोचिंग क्लास चलाते हैं। गेटकीपर के सम्माननीय पदों पर बड़ी-बड़ी जुल्फोंवाले कस्बे के हीरो हैं, जो बम्बई न जा सके, अन्यथा वाकई में किसी कव्वालियोंवाली फिल्म के हीरो होते। हाल के तीन गेट हैं, जो पिक्चर चलने पर इसलिए खुले रखे जाते हैं कि पब्लिक को हवा मिलती रहे। हॉल में पंखे नहीं हैं। जैसे-तैसे अन्दर घुस मुफ्त में देखनेवाले लौंडों का दल सिनेमा के आस-पास मँडराया करता, जिन्हें गेटकीपर गालियाँ देकर भगाते रहते हैं या कई बार बड़े भैया खुद छड़ी लेकर दौड़ते हैं। आठ बजे जब अँधेरा हो जाता, फिल्म चालू कर दी जाती। प्रोजेक्टर एक ही होने के कारण इंटरवल चार करने पड़ते हैं। मोहनबाबू गुनी आदमी हैं। मशीन का काम इतमीनान से करते हैं। ग्यारह, साढ़े ग्यारह और कई बार बारह तक फर्स्ट शो चलता है। फिर सेकंड शो शुरू होता, जो रात के ढाई-तीन तक खिंचता। पुरानी कटी-पिटी फिल्में, जो सभी जगह चल चुकने के बाद कस्बे में आतीं, बार-बार चलते में टूट जातीं, इससे इंटरवलों की संख्या और बढ़ जाती। हाल में बैठने के लिए सभी किस्म की कुर्सियाँ हैं। लम्बी बेंचे, टीन की कुर्सियाँ, फोल्डिंग चेयर्स, झूल, टूटी स्टिंग के सोफे और मोढ़े भी। सभी लाइन से लगा दिए गए हैं, लोग अपनी पसन्द की कुर्सी छाँटकर बैठ सकते हैं। खटमल सबमें हैं। थर्ड क्लासवालों के लिए दरियाँ और चटाइयाँ बिछी हुई हैं, जहाँ देखनेवाला इतमीनान से फैलकर बैठ सकता है। औरतों के बैठने का अलग इन्तजाम है, जिसकी व्यवस्था तुलसीबाई के हाथ में है। यह खुर्राट औरत लड़ने-झगड़नेवालियों का झोंटा पकड़ बाहर कर देती है और लेडीज क्लास में शान्ति रखती है।

अक्सर ही आस-पास के गाँव के लोग बैलगाड़ियों में बैठ सिनेमा देखने आ जाते। सिनेमा के बाहर खुदे मैदान में बैलगाड़ियाँ खोल दी जातीं। दोनों शो तबीयत से देखने के बाद वे लोग बाहर खुले में सो जाते। कस्बे के हाट के दिन ऐसी भीड़ बढ़ जाती।

सिनेमा के बाहर रोज शाम ऐसा वातावरण बन जाता, जैसे बड़े भैया की लड़की का ब्याह हो। लोग आते, टिकट खरीदते, मगर बड़े भैया से मिले बगैर सिनेमा में नहीं जाते। एक्साइज के अफसर, बिजलीघर के बाबू पुलिसवाले, जिला केन्द्र से दौरे पर आए अधिकारी आदि सभी की बड़े भैया चाय-पान से खातिर करते और सिनेमा में मुफ्त सीट देते। उस रोज एक्साइजवाले सिंग साहब एक जागीरदार के साथ आए, जो उनके मेहमान थे। पहले बड़े भैया के पास खबर आ गई थी कि दो सीटें खाली रखना और इन्टरवल में शरबत वगैरा का इन्तजाम कर देना। जागीरदार साहब अपने लड़के के लिए सिंग साहब की लड़की देखने आए थे और मेहमान थे। खातिर में कोई कमी नहीं होनी थी। बड़े भैया मौके की नजाकत को समझ गए। उन्होंने हॉल में जागीरदार साहब और सिंग साहब के बैठने के लिए सोफा खाली रखवाया और इन्टरवलों में शरबत और पान भिजवाए। फिल्म में जागीरदार साहब को डान्स पसन्द आ गया।

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