लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
कस्बे का सिनेमा-मैनेजर
जाने कैसे वह बेढब-सा मकान कस्बे के सभी लोगों को सिनेमा नजर आता है! कोई वजह
नहीं है कि वह सिनेमा-सा लगे, सब उसे सिनेमा कहते हैं, और वास्तव में वह
सिनेमा है भी। वह मुम्फली का गोदाम नहीं है और न कोई सरकारी प्राथमिक शाला,
जो कि उसे होना चाहिए। सिनेमा के बाहर किसी फिल्म का बोर्ड नहीं रखा रहता,
क्योंकि हर सुबह सिनेमा के मालिक बड़े भैया उसे उठवाकर कस्बे के प्रमुख चौराहे
पर रखवा देते हैं, जहाँ उसे शाम के पाँच बजे तक लोग देख सकते हैं। वे खुद भी
उस पर नजर रख सकते हैं, क्योंकि सामने ही उनके भाई की आढ़त की दुकान है, जहाँ
वे दिन-भर बैठे रहते हैं। जब बोर्ड उठाने के लिए कोई आदमी नहीं मिलता तो बड़े
भैया खुद बोर्ड को उठाकर ले आते और चौराहे पर रख देते। शाम को वही बोर्ड
सिनेमा के बाहर रख दिया जाता। दिन-भर वहाँ कोई बोर्ड नहीं रहता,
क्योंकि आवारा लड़कों का ठिकाना नहीं, वे कब उस पर चिपका पोस्टर निकालकर ले
जाएँ! निगरानी नहीं रखी जा सकती। सुबह सिनेमा के मालिक और मैनेजर छोटे भैया
टाकीज पर आते और सफाई वगैरा करवाते। फिर वे शाम तक इधर नहीं आते। आपरेटर के
कमरे की झाड़ू शाम को लगती, क्योंकि आपरेटर मोहन दादा का हुकुम था कि उनकी
अनुपस्थिति में कोई मशीनरूम में नहीं घुसेगा।
सारा कस्बा सिनेमा मालिक को बड़े भैया के नाम से जानता है और इज्जत करता है।
पक्का सिनेमा बँधवाकर उन्होंने कस्बे की शान बढ़ाई है। पड़ोस के कस्बे निसातपुर
में जो टाकीज बना है, उसकी छत नहीं है और बरसात में लोगों को छाता खोलकर
सिनेमा देखना पड़ता है। उसकी तुलना में उनके कस्बे का सिनेमा बारहमासा कैं,
जिस पर टीन की छत लगी है और ईश्वर ने चाहा तो एक दिन कवेलू भी लग जाएँगे। इस
जोरदार काम के लिए कस्बे के लोग बड़े भैया को मान देते हैं। आढ़त की दुकान के
सामने से निकलनेवाला कोई व्यक्ति बड़े भैया को नमस्कार या राम-राम किए बगैर
आगे नहीं बढ़ता। कस्बे के प्रतिष्ठित व्यक्ति सपरिवार (सनेमा जाने के पूर्व
दोपहर को आकर बड़े भैया से व्यक्तिगत रूप से सलाह-चर्चा कर लेते हैं।
''तुम्हारी भौजी कह रही थी यह वाला खेल देखने को। बच्चे भी पीछे पड़ रहे
हैं।''
''आ जाओ, खेल बुरा तो नहीं है। सपरिवार देखने लायक है।'' बड़े भैया कुछ
विचारकर जवाब देते।
''यही सोच रहे हैंगे। फस्ट ही देख लें। फिर सेकंड में तो देर हो जाएगी।''
''हां, फस्ट ही देख लो। बच्चों का मामला ठहरा! सो जाते हैंगे। उस दिन नहीं
देखा! गिरधारी बाबू और उनके घर से आई थीं सेकंड शो मैं। छूटने तक तीनों बच्चे
सो गए। जगाओ तो जागे नहीं। तीनों बच्चों को उठाने की समस्या। वे दो जने। बड़े
परेशान! फिर हमने मोहन दादा से कहा कि तुम टाकीज बन्द कराव और चाबी अपने पास
रखो। उनके बड़े लड़के ललित को हमने कंधे पर उठाया, मझले शोरी को गिरधर बाबू ने
उठाया और गुड़िया को भौजी ने लिया। तब घर पहुँचे। सो हमारी मानो तो फस्ट ही
देख लो, फिर तुम्हारी मर्जी। हमें तो दोनों शो चलाने हैंगे!''
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