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लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ

जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


''यही ठीक है, फस्ट देख लें! भीड़ तो नहीं है ज्यादा?''
''तुम्हें क्या करना भीड़ से? होय सुसरी भीड़! तुम्हारे लिए सीट मिल जाएगी।'' बड़े भैया का अपनत्व उमड़ आता।
''एक लाइन में करवा देना।''
''करवा देंगे, मगर जरा जल्दी आ जाना।''
''आ जाएँगे।''
वे इतमीनान से आगे बढ़ जाते।
पिक्चर खराब हो, हालाँकि ऐसा कम ही होता, तो बड़े भैया को बातें सुनने को मिलती हैं। प्लाट में कोई रहस्य की बात हो तो बड़े भैया से आकर समझ लेते। बड़े भैया सबको प्रेम से समझाते।
अपनी बहू और बेटी को साथ ले मन्दिर से लौटती कोई प्रौढ़ा स्त्री बड़े भैया को देख रुक जाती, ' 'काहे बड़े भैया, चोरों का खेल लगाया है इस बेर! हम तो नहीं देखें।''
''ज्वेल थीफ!'' बड़े भैया हँसते। ''हां, चोरों का तो है, बुआ! शरीफों का खेल अगली बार लगाएँगे। फिर आना देखने सबके साथ।'' बहू चार कदम आगे घूँघट डाले खड़ी रहती और बेटी वहीं मुँह खोले उनकी बातें सुनती।
''अगली बार भक्त प्रहलाद लगाएँगे, बुआ।''
''सच्ची!''
''तुम्हारी सौं।'' बड़े भैया कहते।
वे लोग प्रसन्न बातें करती आगे बढ़ जातीं।
इधर बड़े भैया के मित्र विशेशर आँखें मसलते दुकान के पटिए पर आकर बैठ जाते।
''बड़े भैया, कल ज्वेल थीफ देखने के बाद रात-भर नींद नहीं आई।''

''क्यों?''
''मन में अनेक विचार उठते रहे। देखो कैसा जमाना आ गया है! किसे अच्छा कहें, किसे बुरा, समझ नहीं आता। क्या दुनिया हो गई है!'' विशेशर गम्भीरता से कहते।
''यह तो है ही!''
''बिचारा देवानन्द सोने-चाँदी की दुकान पर नौकरी करने आया था, कैसे झमेले में फँस गया! वह तो कहो, बाप पुलिस अफसर था तो उसने इतनी दौड़-भाग कर, जान जोखम में डाल बेटे को बचा लिया, नहीं कौन पूछता हैगा इस जमाने में?''

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