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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


लोग कहते हैं कि ख्यालीरामजी कांग्रेस में रहते तो उनकी इज्जत रहती। 'मास' यानी भार, व्यक्तित्व का वजन बढ़ता पर वेलोसिटी अर्थात् गति में कमी आ जाती। वह दस साल भी मंत्री नहीं हो पाते। ख्यालीरामजी ने आइन्स्टीन का फार्मूला अपनाया। भारत में कमी आने दी, प्रभाव गिरा पर अपनी गति बढ़ा ली। गति इतनी भी नहीं बढ़ाई कि 'भारशून्य हो जाते, पर कुछ अवश्य बढ़ाई।

सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़कर वह बरसों में मंत्री. बनते, उसके बजाय वह अवसरवाद के 'लिफ्ट' में बैठे और मंत्री बन गए। ऊर्जा स्थिर रहती है। हमारे श्री ख्यालीरामजी की तिकड़म-क्षमता की भी सीमा है। जितना जोर कांग्रेस में रहकर मंत्री बनने में लगाते, उतना जोर अब मन्त्रीपद बचाने में लगाएँगे। वेलोसिटी गिराएँगे और व्यक्तित्व वजनदार बनाएँगे। आइन्स्टीन का फार्मूला हमेशा काम देगा।

ख्यालीरामजी राजनीति समझते हैं। राजनीति में भी एक 'क्वान्टम थियरी' काम करती है। आज की राजनीति में हर 'एक्शन' अर्थात् क्रिया कालगति और ऊर्जा का परिणाम होती है। एक यूनिट  'एनर्जी' से एक यूनिट 'एक्शन' निस्सरित होता है। ख्यालीरामजी इस नियम के अपवाद नहीं। वह भी उसी सिद्धान्त को मानते हैं जो इस ब्रह्मांड के सभी ग्रहों एवं पदार्थों पर लागू है। यानी जिसे कहते हैं, 'प्रिंसिपल ऑफ लीस्ट एक्शन'-कम-सें-कम क्रिया का सिद्धान्त। जब एक वस्तु एक अवस्था से दूसरी अवस्था में प्रवेश करती है, वह ऐसी राह अपनाती है जिसमें क्रिया सबसे कम हो अर्थात् एनर्जी कम खर्च हो और परिणाम अधिक निकले। जातिवाद, रिश्वत, भाई-भतीजावाद के मूल में यही थियरी है। कम-से-कम एक्शन से अधिकाधिक परिणाम प्राप्त करने का प्रयत्न स्वाभाविक है।
ख्यालीरामजी ने साधारण विधायक की स्थिति से मन्त्रिपद तक पहुँचने में सही 'लीस्ट एक्शन' का परम सिद्धान्त अपनाया अर्थात् बस दल बदला और मंत्री हो गए। क्वान्टम थियरी के रहस्य को समझा और जीवन में अपनाया। विज्ञान से मानव को अनेक लाभ हुए हैं। ख्यालीरामजी ने भी विज्ञान से लाभ उठाया तो क्या आश्चर्य! लोग कहते हैं कि ख्यालीरामजी ने अनुशासन भंग किया। यह गलत है। आइन्स्टीन कहता है कि इस ब्रह्मांड में जितनी गतिविधियाँ हैं, वे सब किसी के द्वारा निर्देशित अथवा प्रेरित नहीं हैं। सब अपने-अपने रास्ते चलते हैं। ख्यालीरामजी ने वही किया जो इन्हें ठीक लगा। सभी ग्रह ऐसा करते हैं। हर ग्रह सबसे सरल रास्ता चलता है और ख्यालीरामजी भी वैसी ही राह चले। आइन्स्टीन के सिद्धान्त ने कई पुरानी मान्यताओं को कसकर लात मारी है। कांग्रेस के दिमाग में अनुशासन के मामले में कुछ पुरानी बातें भरी हैं। ख्यालीरामजी ने उन्हें नहीं माना।

मेरे ख्याल से गलती कांग्रेस की है। उन्होंने ख्यालीरामजी को मात्र अणु समझा और इस भ्रम में रहे कि वह टूट नहीं सकता। वे समझते थे कि ख्यालीरामजी अकेले बेवजन और शक्तिहीन हैं। आइन्स्टीन ने बताया कि अगर अणु इकट्ठे हुए तो वे हद-से-हद एक पत्थर हो सकेंगे। बस किसी का सिर फोड़ने से अधिक कुछ नहीं कर सकते। अकेला अणु ऊर्जा का पुंज होता है। उसमें बड़ी शक्ति होती है। ख्यालीरामजी की राजनीतिक निष्ठा के न्यूट्रोन के आस-पास महत्त्वाकांक्षाओं के कितने इलेक्ट्रोन चक्कर काटते हैं, पार्टी नहीं जानती थी। पर ख्यालीरामजी विधायक अपने अन्तर की इस बनावट से परिचित थे। अपने अणु व्यक्तित्व के उन्होंने वे चमत्कार दिखाए, कि सब दंग रह गए।

एक सज्जन कह रहे थे कि ख्यालीरामजी प्रदेश की राजनीति के मुख्य बिन्दु नहीं रहेंगे और दूसरों के हाथ की कठपुतली बन जाएँगे। मैं पूछता हूँ कि आप बिन्दु समझते हैं? पहले आइन्स्टीन पढ़िए, फिर बात करिए। एक शान्त तालाब में एक कंकड़ फेंको तो गोल-गोल लहरें बनती हैं। जिस बिन्दु पर कंकड़ फेंका गया है, वह केन्द्र होता है और उसके चारों ओर वृत्त बनते हैं। अब इसी क्षण उसी तालाब के अन्य भाग में एक और कंकड़ फेंको तो वहाँ भी उसी तरह गोल लहरें बनेंगी, वृत्त बनेंगे और जहाँ दूसरा कंकड़ गिरा, वह स्थान भी केन्द्र होगा। एक और बराबरी का मुख्य-बिन्दु।

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